नई दिल्लीः साहित्य अकादमी द्वारा रैदास जयंती के अवसर पर साहित्य मंच के तहत एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें दामोदर मोरे ने संत रैदास का काव्य, कौशल पंवार ने संत रैदास के काव्य का सामाजिक आधार, बिपिन कुमार ने संत रैदास के काव्य में समाज-दर्शन एवं अमित कुमार विश्वास ने संत रैदास: जीवन और दृष्टि विषय पर अपने विचार व्यक्त किए. आभासी मंच पर आयोजित इस कार्यक्रम में सर्वप्रथम जोशी-बेडेकर महाविद्यालय के मराठी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं प्रख्यात हिंदी-मराठी लेखक दामोदर मोरे ने कहा कि संत रैदास का साहित्य दो विचार बिंदुओं पर स्थित प्रतीत होता है, जिसमें एक निर्गुण भक्ति का छोर है और एक अंधविश्वास पर गहरी चोट करता है. संत रैदास सत्य शोधक हैं और अपनी कविता द्वारा मनुष्यता, ममता और समता का झंडा फहराते हैं. उन्होंने कहा कि संत रैदास की आवाज सम्प्रभुता और लोकतंत्र की अवधारणा को पुष्ट करने वाली है

संस्कृत और हिंदी की कवयित्री तथा इग्नू में कार्यरत कौशल पंवार ने अपने वक्तव्य में कहा कि संत रैदास ने वर्ण व्यवस्था का विरोध करते हुए कर्म आधारित सामाजिक संरचना की बात कही. उनके काव्य में सामाजिक समरसता के साथ-साथ वंचितों के प्रति मानवीय संवेदना भी विशेष रूप से देखी जा सकती है. उन्होंने धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के लिए कर्म आधारित समाज की संकल्पना प्रस्तुत की. काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के हिंदी विभाग के प्रोफेसर बिपिन कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि संत रैदास ने मानवीय शोषण के सभी आयामों का विरोध किया. वे मनुष्य की आजादी को मुक्ति का रास्ता मानते थे और यह रास्ता मानव की जाग्रत चेतना के आधार पर ही पाया जा सकता है. इसके तहत हर तरह की पराधीनता को समाप्त करके ही सामाजिक समरसता का वातावरण तैयार किया जा सकता है. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की पत्रिका बहुवचन के सहायक संपादक अमित कुमार विश्वास ने कहा कि संत रैदास दलितों के प्रति किए जा रहे प्रपंचों का विरोध करते हुए मन की शुद्धता को सर्वोपरि मानते थे. उन्होंने मानवीय श्रम की गरिमा को स्थापित करने का कार्य किया. कार्यक्रम का संचालन अकादमी में संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया.