नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने प्रख्यात कश्मीरी कथाकार और नाटककार हरिकृष्ण कौल पर एक परिसंवाद आयोजित किया, जिसमें कश्मीरी परामर्श मंडल के संयोजक अज़ीज़ हाजिनी ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि हरिकृष्ण कौल केवल उत्कृष्ट लेखक ही नहीं बल्कि एक आला इनसान भी थे और प्रचार-प्रसार से दूर ही रहते थे. उन्होंने कहा कि उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को देखते हुए अभी उनपर बहुत काम किया जाना बाकी है. उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित कश्मीरी लेखकों से अनुरोध किया कि हम सबको इस सिलसिले में मिलकर कार्य करना होगा. हरिकृष्ण कौल के सहपाठी रहे प्रख्यात कश्मीरी लेखक औतार कृष्ण रहबर ने कहा कि कश्मीरी भाषा में जिन लोगों ने भी अच्छी कहानी लिखी है, उनमें हरिकृष्ण का नाम सबसे आगे है, उनकी कहानी की सबसे बड़ी खासियत उसमें 'कहानीपन' तथा गहरा तंजो मज़ाह था. उन्होंने सामान्य जनभाषा का प्रयोग कर कश्मीरी भाषा को ऊंचाइयों तक पहुंचाया. उन्होंने कश्मीरी भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण रचनाकारों के ऑडियो कैसेट बनवाने की बात कही, जिससे कि यह भाषा आने वाली पीढ़ी में लोकप्रिय रह सके.
अलीगढ़ विश्वविद्यालय के मुश्ताक मुंतज़िर ने कहा कि उन्होंने पूरा जीवन कश्मीरी भाषा को आगे बढ़ाने में लगाया और कुछ महत्त्वपूर्ण अनुवादों के ज़रिये भी कश्मीरी साहित्य को आगे बढ़ाने का कार्य किया. गौरीशंकर रैणा ने उनके नाटकों और रेडियो नाटकों के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए. प्रारंभ में अपने स्वागत भाषण में साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने कश्मीर के प्राचीन साहित्य के महत्त्वपूर्ण लेखकों का जिक्र करते हुए कहा कि आधुनिक कश्मीरी कथा साहित्य में हरिकृष्ण कौल का नाम सबसे महत्त्वपूर्ण है. वे मानवता के सच्चे पक्षधर थे और उन्होंने आम नागरिकों की समस्याओं को सबके सामने प्रस्तुत किया. इस अवसर पर राजेश भट्ट, रोशन लाल 'रोशन', आरके भट्ट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्हें जरूरी रचनाकार के रूप में याद किया. कार्यक्रम में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव निरुपमा कोटरू, प्रख्यात कश्मीरी लेखक दीपक कौल, एसके कौल, वीर मुंशी, राजेंद्र प्रेमी, भारत पंडित, एमके निर्धन एवं अशोक सराफ आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया.