नई दिल्लीः साहित्य अकादमी के 66वें स्थापना दिवस के अवसर पर प्रख्यात लेखक इंद्रनाथ चौधुरी का भारतीय नवजागरण की विविध धाराएं विषयक व्याख्यान हुआ. अपने वक्तव्य में इंद्रनाथ चौधुरी ने कहा कि हमें भारतीय नवजागरण की परिभाषा का विश्लेषण करना होगा. भारतीय नवजागरण पश्चिमी दृष्टि से न परिभाषित किया जा सकता है, न उसे समझा जा सकता है. उन्होंने कहा कि भारतीय नवजागरण कोई 19वीं शताब्दी की कल्पना नहीं है. उसके बीज तो हमारे अतीत से ही अंकुरित हुए हैं. उन्होंने नवजागरण का पहला अंकुरण 800 ईसा पूर्व में उपनिषद् काल में बताते हुए कहा कि पहली बार हमारी युवा शक्ति अपने गुरुओं से सवाल पूछती है कि ईश्वर क्या है? और जो उत्तर उन्हें प्राप्त होते हैं, वह है तुम स्वयं में ब्रह्म हो अर्थात् ब्रह्मात्मा.आगे चलकर बौद्ध धर्म व्यापक रूप से नवजागरण का कार्य करता है. पहली बार दासता और असमानता का विरोध हम समाज में देखते हैं. हमारी सबसे बड़ी पूंजी नैतिकता है.
चौधुरी ने मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का भी जिक्र किया कि यह पूरे देश में एकसाथ प्रसारित हुई. आधुनिक समय में भारतीय नवजागरण के प्रतिनिधि राजा राममोहन राय और स्वामी विवेकानंद हैं. अंत में उन्होंने कहा कि भारत का नवजागरण अतीत से प्रेरणा लेते हुए तथा भविष्य का चिंतन करते हुए बनता है. हमारी निरंतरता ही हमारी पहचान है. यह निरंतरता पारंपरिक तो है, लेकिन यह लगातार अपने में सुधार लाती रहती है. इस कार्यक्रम में रामबहादुर राय, निर्मलकांति भट्टाचारजी, बलराम, बीएल गौड़, रणजीत साहा आदि सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं के लेखक एवं पत्रकार भारी संख्या में उपस्थित थे. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादमी के सचिव डॉ के. श्रीनिवासराव ने इंद्रनाथ चौधुरी का स्वागत अंगवस्त्रम् एवं पुस्तक भेंट करके किया.