नई दिल्लीः साहित्य अकादमी हिंदी के प्रचार-प्रसार के किसी भी अवसर को चूकना नहीं चाहती. इसीलिए दिल्ली पुस्तक मेले में भी उसने काफी आयोजन किए. आयोजनों की इस कड़ी में से एक कार्यक्रम स्त्री लेखन को समर्पित था, जिसका नाम 'अस्मिता' था. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात कथाकार और कवयित्री ममता कालिया ने की. अपने संबोधन में ममता कालिया कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गईं और वहां मौजूद महिला लेखिकाओं की रचना पर टिप्पणी करते हुए यहां तक कह दिया कि एक समय था जब यह कहा जाता था कि महिलाएं 'भी' लिख रही हैं, और आज यह समय है कि महिलाएं 'हीलिख रही हैं. उन्होंने स्त्री लेखन के सौ वर्षों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि नई पीढ़ी इस परंपरा को और समृद्ध कर रही है. 

ममता कालिया के इस 'भी' और 'ही' वाली टिप्पणी पर चर्चित कथाकार भगवान दास मोरवाल की टिप्पणी है कि एक वरिष्ठ लेखिका के नाते ममता कालिया को इस तरह की प्रतिक्रिया से या तो बचना चाहिए था या फिर इसे और भी स्पष्ट करना चाहिए कि इस 'भी' और 'ही' से उनका आशय क्या है? अगर वह यह कहना चाहती हैं कि पहले पुरुष लेखकों के साथ महिलाएं 'भी' लिख रही थीं, तो यह उचित है, पर इस समय महिलाएं 'ही' लिख रही हैं जैसी टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं. हां अगर ममता कालिया का आशय नारी के एकांतिक क्षणों की अभिव्यक्ति, उसकी भावनाओं, संवेदनाओं, उल्लास और दर्द की अभिव्यक्ति से है तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि क्या ऐसा केवल स्त्री लेखिका 'ही' कर रही हैं. 

इस कार्यक्रम में हिंदी रचनाकार अंजू शर्मा, अनुपम सिंह. गीताश्री, प्रज्ञा तथा पंजाबी की वरिष्ठ कवयित्री अरतिंदर संधू ने अपनी रचनाओं का पाठ किया.  प्रज्ञा ने अपनी कहानी 'रेत की दीवार' पढ़ी. इस कहानी में पुरुषों के प्रति स्त्री के भीतर के संशय और भय को प्रतिविंबित किया गया था, परंतु कथा के मुख्य पात्र ड्राइवर के प्रति उसकी शंकाएं तब निर्मूल साबित होती हैं, जब वह उसके पूरे परिवार के प्रति सहृदयता का व्यवहार प्रदर्शित करता है.  अंजू शर्मा की कहानी में एक मां के संघर्ष को बहुत मार्मिक ढंग से व्यक्त किया गया था.  इस कार्यक्रम में गीताश्री ने अपनी कहानी 'मलाई' पढ़ी. पंजाबी की वरिष्ठ रचनाकार अरतिंदर संधू ने अपनी दो कविताएं और एक कहानी सुनाई, जिसे श्रोताओं ने बहुत पसंद किया. हिंदी की युवा कवयित्री अनुपम सिंह ने अपनी तीन सशक्त कविताओं से स्त्री मन का विस्तृत वितान रच दिया.

कार्यक्रम का संचालन करते हुए साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने कहा कि साहित्य अकादमी स्त्री रचनात्मकता को प्रोत्साहन, प्रकाश और संवर्धन के लिए कृत संकल्पित है. उन्होंने इस दिशा में अकादमी द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों और योजनाओं के बारे में भी बताया.