नई दिल्लीः साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित 'साहित्योत्सव 2022' के तीसरे दिन 'आमने सामने' कार्यक्रम और '1947 के बाद भारत में नाटक का विकास' विषयक परिसंवाद हुआ. परिसंवाद का उद्घाटन वक्तव्य रंगकर्मी भानु भारती ने दिया. हिंदी नाटककार भुवनेश्वर का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन नाट्य परंपरा तो श्रेष्ठ थी ही लेकिन आधुनिक रंगमंच परंपरा में भी विशिष्टता के सूत्र निहित हैं. भुवनेश्वर के एब्सर्ड नाटक इसका उदाहरण हैं. उस समय उन्होंने जो भी कुछ कल्पित किया था वह आज भी सजग रंगमंच का आधार है. भारती का कहना था कि भाषाई रंगमंच पर संकट हमेशा रहा है और रहेगा भी लेकिन उसकी जिजीविषा ही उसे बचाए रखेगी. सत्र की अध्यक्षता करते हुए अकादेमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने कहा कि नाटक में अजूबे का तत्व ही उसे अनोखा और विशेष बनाता है. कर्नाटक के आदिवासी नाटक हों या वहां के कालजयी नाटक, सभी मानवता के नजदीक हैं. उन्होंने नाटकों के तीन चरण बताते हुए पारसी थियेटर, साहित्यिक नाटक और आधुनिक नाटकों के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कला माध्यमों पर तकनीक के प्रभुत्व को घातक बताते हुए कहा कि सच्ची मानवीय संवेदना ही कलाओं को जिंदा रखती है.
परिचर्चा सत्र सतीश कुलकर्णी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ. इस सत्र में रबिजीता गोगोई ने असमिया नाटक, संगम पांडेय ने हिंदी नाटक, राजा वारियर ने मलयाळम्, पी. बीरचंद्र सिंह ने मणिपुरी और अभिराम भडकमकर ने मराठी थियेटर की पिछले 75 वर्षों की यात्रा को प्रस्तुत किया. सभी ने अपनी-अपनी भाषाओं के नाटकों के विभिन्न चरणों का उल्लेख करते हुए कहा कि सबसे पहले नाटक राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत थे लेकिन तब भी हमने अपनी प्राचीन परंपरा के अनेक नाटक और शिल्प को समकालीन रूप देते हुए प्रस्तुत किया था. हर भाषा में नाटक के लिए उसके खत्म होने का संकट ही उसे पुनर्जीवित रखता है और उससे जुड़े लेखक-कलाकारों को दिशा प्रदान करता रहता है, क्योंकि रंगमंच का दर्शकों से प्रत्यक्ष संवाद ही उसे अन्य कला माध्यमों से महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक साबित करता है. इससे पहले साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत लेखकों का सम्मिलन हुआ, जिसमें विजेता रचनाकारों ने अपने रचनात्मक अनुभव पाठकों से साझा किए. सम्मिलन की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने की. 'आमने सामने' कार्यक्रम में असमिया, बाङ्ला, गुजराती, हिंदी, तमिळ एवं तेलुगु भाषा के लिए पुरस्कृत लेखकों से क्रमशः भुवनेश्वर डेका, सुबोध सरकार, विनोद जोशी, चंदन कुमार, मालन एवं एस. नाममल्लेश्वर राव ने बातचीत की.