लखनऊः उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में साहित्यिक, लेखन व विचारों को समर्पित 'प्रतिलिपि क्लब' की दूसरी गोष्ठी संपन्न हुई. इस गोष्ठी में शहर के वरिष्ठ कथाकार सुधाकर अदीब, महेंद्र भीष्म,अलका प्रमोद सहित चालीस से भी अधिक कथाकार, साहित्यकार मौजूद थे. इस गोष्ठी में वैसे तो वर्तमान लेखन पर ढेरों बातें हुईं, पर जिन खास विषयों पर चर्चा हुई, उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था बाजारवाद का कसता शिकंजा. पर यह विषय इतना व्यापक था कि इसकी चर्चा अपूर्ण रही और वक्ताओं ने यह तय किया कि इस विषय पर चर्चा अगली गोष्ठी में पूरी होगी. इस दौरान सदस्यों के आग्रह पर मनोज रूपडा ने अपनी बाजारवाद विषयक कहानी 'रद्दोबदल' का पाठ किया.
वरिष्ठ कथाकारों ने इस अवसर पर वहां मौजूद नवलेखकों को कहानी और उपन्यास के तत्व क्या होने चाहिए? संस्मरण और रेखाचित्र में क्या अंतर है? के बारे में विस्तार से बताया. प्रतिलिपी क्लब के सदस्यों ने अपनी लघुकथा तथा कविताओं का पाठ किया. सुधाकर अदीब, जो कि साहित्यकार के साथ-साथ एक अच्छे गायक भी हैं, ने कुछ गीत भी गाकर सुनाए. कुल मिलाकर प्रतिलिपी की यह गोष्ठी अत्यन्त ही सार्थक, ज्ञानवर्धक एवं ऊर्जावान रही. उपस्थित सभी सदस्यों ने प्रतिलिपि की ऐसी गोष्ठी के लिए सराहना की; जहां वरिष्ठ और कनिष्ठ के बीच कोई भेद नहीं, जिसके लिए हर रचनाकार समान रूप से महत्त्वपूर्ण है.