वाराणसीः सृजन की न तो कोई खास उम्र है न ही कोई सीमा. जिस तरह लिखने पढ़ने को किसी खा दायरे में नहीं बांधा जा सकता और जिस तरह रचनाकार अपने खुले विचारों से अपने साहित्य में पूरी एक दुनिया गढ़ देता है, क्या विज्ञान इससे इतर सोचता है? कुछ-कुछ इन्हीं विचारों से प्रभावित हो काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय ने अपनी छात्राओं को देश की एक जानीमानी वैज्ञानिक से मिलवाया. नीमहॉन्स बैंगलोर के बायोफ़िज़िक्स की वैज्ञानिक प्रोफेसर प्रीति जोशी ने बीएचयू में महिला महाविद्यालय की छात्राओं से मुलाकात की.
प्रोफेसर प्रीति जोशी का कहना था कि देश की उन्नति में महिला वैज्ञानिकों की सशक्त भागीदारी की आवश्यकता है. पैसे के पीछे भाग रहे युवाओं से अलग आप छात्राएं एक अतिरिक्त सोच और एक अतिरिक्त कार्य से अपने आप को वैज्ञानिक बना सकती हैं. वैज्ञानिक बनने चाहत वैसे ही है जैसे सृजन करने की. जैसे आप शब्द पढ़ रही हैं वैसे ही दिमाग़ के न्यूरॉन कोशिकाओ में  दौड़ रही इलेक्ट्रिक और केमिकल तरंग की गूढ़ता को फ़िज़िक्स के स्पेक्ट्रस्कॉपिक यंत्रो द्वारा पढ़ने और समझने की जटिल प्रक्रिया को समझा जा सकता है. इस अवसर पर एमएससी बाइओइन्फ़र्माटिक़्स और बीएससी की छात्राओं के जिज्ञासु प्रश्नों ने वैज्ञानिक प्रो जोशी को प्रभावित किया. प्राचार्या प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी ने छात्राओं और महिला वैज्ञानिकों के सीधे साक्षात्कार के लिए बधाई दी. उनका कहना था कि विज्ञान इतना भी गूढ़ नहीं, जिस तरह शब्द और भाव समझ उसे अभिव्यक्त कर कोई साहित्यकार बन जाता है, वैसे ही पदार्थों के रहस्य को समझ वैज्ञानिक बना जा सकता है.  इस अवसर  पर प्रो नीलम श्रीवास्तव, डॉ दीक्षा कटियार,  प्रो पूनम सिंह, डॉ ऋचा रघुवंशी, डॉ उषा उपस्थित थे.  डॉ हृदयेश मिश्र ने स्वागत किया और डॉ राजीव मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापित किया.