सहरसाः जगत जननी माता सीता के मायके मिथिला क्षेत्र में एक अनूठा केंद्र चर्चा में है. सहरसा में प्रसिद्ध मत्स्यगंधा झील के किनारे वैदेही कला संग्रहालय सह रामायण शोध केंद्र स्थापित किया गया है. यहां पिछले दिनों बटोही संस्था ने तीन दिवसीय सांस्कृतिक आयोजन भी किया था. उसी अवसर पर बिहार के कला संस्कृति मंत्री आलोक रंजन ने इस संग्रहालय का उद्घाटन किया और मां जानकी के इस धरती पर प्रादुर्भाव को याद किया. इस संग्रहालय की स्थापना फिजी में भारत के सांस्कृतिक राजदूत रह चुके प्रो ओमप्रकाश भारती ने की है. केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और बिहार राज्य के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के सहयोग से आयोजित इस सांस्कृतिक आयोजन में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति रजनीश कुमार शुक्ल को भारतीय मंडल दर्शन रत्न सम्मान भी दिया गया. आयोजकों ने बताया कि मिथिला विभूति पूर्व मीमांसा और अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रवर्तक महान दार्शनिक आचार्य मंडन मिश्र व उनकी पत्नी विभूति भारती की स्मृति में शुरू किया गया यह सम्मान प्रो शुक्ल को भारतीय कला संस्कृति तथा दर्शन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए दिया गया. कोलकाता से प्रसिद्ध माइन नाट्य गुरु निरंजन गोस्वामी की मौजूदगी में प्रो शुक्ल को सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र और ₹21000 की राशि भेंट की गई.
महोत्सव में विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों ने गायन, वादन और नृत्य की कई विधाओं में अपनी प्रस्तुति देकर समां बांध दिया. पश्चिम बंगाल से गेर गेरु राय के नेतृत्व में रासधारी, सोमा चक्रवर्ती का भारतनाट्यम, भोजपुरी माटी आरा का सीता स्वयंवर नाटक की प्रस्तुति दी. संतोष कुमार के नेतृत्व में नारदी गायन, रंगकर्मी विकास कुमार सृजन दर्पण मधेपुरा के नेतृत्व में विद्यापति का लोकनृत्य जट जट्टी बिदेसिया नृत्य, जलपाईगुड़ी से सोमा चक्रवर्ती ने भरतनाट्यम प्रस्तुत किया. वहीं, नेपाल के जनकपुर से आए सुनील कुमार ने भी गीत प्रस्तुत किया. महोत्सव में बटोही के सचिव डॉ महेंद्र, पंकज कुमार, नीतीश प्रियदर्शी, आकाश कुमार, आरती कुमारी ने सहयोग किया. महोत्सव में राम कथा से जुड़े लोकगीतों में नारदी रसन चौकी और बिहार के लोक गीतों में राम-सिया के प्रसंग पर विशेष चर्चा हुई. निरंजन गोस्वामी की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में मधुबनी के भटसिमर गांव से आए 'रसन चौकी' के कलाकारों ने राम-जानकी विवाह के दौरान बरात के स्वागत, सीता स्वयंबर, सोहर, कोहबर, द्वार छेकाई और विदाई गीतों पर रसन के धुनों से समां बांध दिया. प्रो भारती ने बताया कि इसमें तीन कड़ा नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है, जिसमें 7 सुरों के अनुसार 7 छिद्र होते हैं. वहीं पार्श्व में एक छिद्र वाले वादन यंत्र का प्रयोग तानपुरे की तरह किया जाता है. उन्होंने बताया कि राम नाम की व्यापकता भारतीय संस्कृति में छठियारी से कटिहारी तक यानी जन्मोत्सव से लेकर अंतिम संस्कार तक है. रसन चौकी के कलाकारों में नथुनी राम, महिंद्र राम, कमल राम, पवन पासवान, योगेंद्र पासवान, स्वरूपलाल राम आदि शामिल थे. इस अवसर पर डॉ आरएन साहू, शोधार्थी विक्रम कुमार सिंह, मृत्युंजय शर्मा समेत कई लोग मौजूद रहे. बटोही संस्था के सचिव डॉ महेंद्र कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया. उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय राम कथा विषय पर वेबिनार में थाईलैंड, नेपाल, कंबोडिया, इंडोनेशिया, सूरीनाम, मॉरीशस आदि देशों से विद्वतजन जुड़े.