नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अखिल भारतीय लेखिका सम्मिलन का आयोजन किया, जिसका उद्घाटन प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग ने किया. उन्होंने कहा कि सहजीवन अभी स्त्री लेखन में प्रमुखता प्राप्त कर रहा है. स्त्री लेखन में छवि बदलने की प्रक्रिया चल रही है. स्त्री अब धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और यहां तक कि व्यक्तिगत सभी रूढ़ियों और मान्यताओं के विरुद्ध अधिक प्रतिरोध कर रही है. उत्तर स्त्रीवाद में मातृत्व को एक शक्ति की तरह पहचाना जा रहा है और यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण है कि मातृत्व के रूप और रूपक में बड़ा बदलाव आया है. सहजीवन और एकदूसरे के साथ खड़े होना स्त्री लेखन और पुरुष लेखन में बढ़ रहा है. यह बहुत अच्छी स्थिति है और यह एक सहजीवी समाज और देश के लिए आवश्यक भी है. बीज वक्तव्य देते हुए प्रख्यात अंग्रेजी विद्वान सुकृता पॉल कुमार ने कहा कि स्त्रियों ने अपनी भाषा और अपना निजी स्वर स्वयं अविष्कृत किया है. स्त्रियां न सिर्फ अपने मुद्दों बल्कि शोषित, पीड़ित और हाशिए के बहिष्कृत समुदायों की समस्याओं को बहुत मानवीय संवेदना के साथ न सिर्फ देख रही हैं बल्कि अपने लेखन में व्यक्त भी कर रही हैं. उन्होंने स्त्रियों के आत्मविस्थापन की पीड़ा को रेखांकित  करते हुए कहा कि यह यों ही नहीं है कि आज स्त्री रचनाकार सीरिया, ईराक और दुनिया के अनेक अस्थिर समाजों के मनुष्यों के बारे में गंभीरता से लिख रही है. उन्होंने अनेक कहानियों और रचनाकारों का ज़िक्र करते हुए कहा कि स्त्रीवादी लेखन ने अनुभूति की प्रामाणिकता को स्थापित किया है.

कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी अतिथि लेखिकाओं का स्वागत अंगवस्त्रम् के साथ किया. उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी स्त्री लेखन को बहुत आशा के साथ देख रही है और पर्याप्त सम्मान देने का प्रयास कर रही है. इसी क्रम में देश के विभिन्न हिस्सों में अखिल भारतीय लेखिका सम्मिलनों का आयोजन किया जा रहा है, जिससे कि स्त्री लेखन को बड़ा फलक प्राप्त हो सके. उन्होंने कहा स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं और यह सिर्फ कहने की बात नहीं है बल्कि स्त्रियों ने इसे साबित करके दिखा दिया है. उद्घाटन सत्र के बाद पहला सत्र कहानी-पाठ का था जिसकी अध्यक्षता शिवशंकरी ने की. इस सत्र में अनामिका बोरा (असमिया), उर्मिला शिरीष (हिंदी), ज्येति कुंकोलियेकर (कोंकणी) और लतालक्ष्मी मेनन (मलयाळम्) ने अपनी कहानियां प्रस्तुत कीं. द्वितीय सत्र कवि सम्मिलन का था, जिसकी अध्यक्षता यशोधारा मिश्र ने की. इस सत्र में राका दासगुप्ता (बाङ्ला), सुषमा रानी (डोगरी), लता हिरानी (गुजराती), कल्पना झा (मैथिली), सरिता सिन्हा (मणिपुरी), अमिया कुँवर (पंजाबी), उमा रानी त्रिपाठी (संस्कृत), सी. भवानी देवी (तेलुगु) और तरन्नुम रियाज़ (उर्दू) ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं. तृतीय सत्र भी कविता-पाठ का था, जिसकी अध्यक्षता लक्ष्मी कण्णन ने की. इस सत्र में बिनिता गोयारी (बोडो), रेहाना कौसर (कश्मीरी), योगिनी सातरकर (मराठी), पवित्र लामा (नेपाली), रीता रानी नायक (ओड़िया), सुमन बिस्सा (राजस्थानी) और यशोदा मुर्मु (संताली) ने अपनी कविताएं सुनाईं. रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का कुछ अंश अपनी मूल भाषा में और उसके बाद उनका हिंदी या अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया.