नागर जी के लेखन में समाज मुखरता से उभर कर आता है, भले ही वो किसी भी विधा में रच रहे हों| वो ‘स्व’ में गुम न रहकर एक सजग बुद्धिजीवी के तौर पर अपने आसपास की परिस्थिति को परखते हैं और फिर पूरी ईमानदारी से उसे बयां करते हैं| उनके लेखन की ताजगी एक पल को भी उसमें प्राचीनता का एहसास नहीं होने देती तथा उसे प्रासंगिक बनाये रखती है |
उनके विषय में प्रेमचंद गांधी का कहना है, “हिंदी दैनिक पत्रकारिता में विष्णु नागर जैसा दूसरा कोई पत्रकार दिखाई नहीं देता, जो कविता, कहानी, व्यंग्य और समसामयिक विषयों पर एक साथ कलम चला सकता हो |”
14 जून 1950 को जन्मे विष्णु नागर जी को उनके जन्मदिन पर #हिंदीजागरण की तरफ से हार्दिक बधाई |
इस मौके पर पेश है उनकी एक कविता
इसी तरह का मैं
उन दिनों,
जब मैं, मैं नहीं था
कोई और था
और
कोई और होने की तरफ़ लगातार बढ़ रहा था
तब भी
मेरा नाम वही था, जो आज है
उन दिनों की याद दिलाते हुए
लोग पूछते हैं
तब तो आप ऐसा कहते थे
ऐसा करते थे
अब तो आप ऐसा नहीं कहते
ऐसा नहीं करते
आप पहले सही थे
या अब हैं ?
हमें तो पहले सही लगते थे
तो मैं जवाब देता हूँ
शायद आप सही कह रहे होंगे
और एकान्त में जाकर रोता हूँ
पूछता हूँ ख़ुद से
कि क्या मैं उसी तरह का
मैं बनने चला था ?