मुरादाबादः पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था 'हिंदी साहित्य संगम' की ओर से स्थानीय मिलन विहार स्थित सनातन धर्म मिलन धर्मशाला में एक भव्य 'काव्य-गोष्ठी' का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह ओंकार ने की. इस काव्य-गोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ. राकेश चक्र थे तो विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. मनोज रस्तोगी मौजूद रहे. काव्य-गोष्ठी का संचालन युवा कवि राजीव प्रखर ने किया. काव्य-गोष्ठी में उपस्थित कवियों द्वारा भिन्न-भिन्न परिवेश से संबंधित अपनी-अपनी कविताएं सुनाईं, पर चुनावी माहौल में वे वर्तमान राजनीतिक हालात पर कटाक्ष करने से बाज नहीं आए. हालांकि कवियों ने लोकतंत्र का सम्मान करते हुए मतदाताओं से भारी मतदान की अपील भी की. इस कार्यक्रम में कवियों ने जो कविताएं प्रस्तुत कीं, उनकी बानगी सोशल मीडिया पर भी डाली. जिसकी बानगी आप यहां भी पढ़ेंः
राजीव प्रखर ने गीत प्रस्तुत किया; 'छिप छिप कर छूती है अम्मा रोज खिलौना कार/ मगर बड़प्पन के हाथों है बुरी तरह लाचार.' राम दत्त द्विवेदी ने सेना के वीर जवानों को समर्पित रचना पेश की; 'सैनिक लड़ते सीमाओं पर जान हथेली पर रखकर/ इनके साथ रहूं धन मन से यह सब बंधु पुत्र अपने हैं.' जितेंद्र कुमार जौली ने राजनीति पर कटाक्ष किया; 'जिन नेताओं के दिल में भरा हुआ है खोट/ उन्हें कभी मत दीजिए अपना कीमती वोट.' राकेश चक्र ने कविता सुनाई; 'मुझे जिंदगी तुझसे नहीं शिकवा शिकायत है/ समझ पाया न कोई गोल है तू या की आयत है./ चमन के फूल कलियां पांखुरी आहत दिखाई दे/ चलन कैसा हवा की आजकल कैसी रिवायत है.' ओंकार सिंह ओंकार ने ग़ज़ल पेश की; 'घरों को प्यार से अपने सजा लो/ सुखी तुम अपने जीवन को बना लो.' के. पी. सरल ने सुनाया; 'आधा भारत हो गया देश का चौकीदार/ चोर न चोरी कर सकें हम सब पहरेदार.' योगेंद्रपाल सिंह विश्नोई ने गीत प्रस्तुत किया; 'आनंद रूप सुख राशि की अनमोल कथा कहलाती है/ अनुभूति तो हो जाती है पर अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है.' वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी ने मुक्तक सुनाया; 'इतना मेरा मन रख लेना/ सबसे अपनापन रख लेना.' रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने सुनाया; 'आया है नववर्ष खुशियों का अलबेला रंग अबीर प्रेम का आया.' डॉ. मनोज रस्तोगी की रचना थी; 'सियासत ने डाल दी दरार रिश्तो में/ अब बगावत का बिगुल बजता है./ दावा तो ये भी कर रहे और वे भी/ देखिए किसके सिर ताज सजता है.' योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने दोहे प्रस्तुत किए; 'राजनीति में देखकर, छलछंदों की रीत/ कुर्सी भी लिखने लगी, अवसरवादी गीत/ सजा हुआ है आजकल, वादों का बाज़ार/ सौदागर करने लगे, सपनों का व्यापार.' आभार अभिव्यक्ति संस्था के अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी ने किया.