पटना: "संस्था के प्रति समर्पण होना चाहिए, व्यक्ति के नही।" ये बात प्रभा खेतान फाउंडेशन और मसि इंक के मासिक कार्यक्रम 'आखर' में डॉ प्रेमलता मिश्र ' प्रेम' ने कही । उनसे बातचीत कर रहे थे मैथिली  व हिंदी रंगमंच से जुड़े पत्रकार किशोर केशव। इस बातचीत में अपने अनुभवों को साझा करते हुए डॉ प्रेमलता मिश्र ' प्रेम' ने कहा कि  12 वर्ष में  विवाह हो जाने के पश्चात उच्च माध्यमिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पटना आकर 1975 से रंगमंच से जुड़ाव और रेडियो पर नाटक सबसे पसंदीदा रचनात्मक कार्य लगा। कुछ वर्ष बाबा नागार्जुन के सान्निध्य प्राप्त करने के बाद वो महिला सशक्तिकरण को लेकर सचेत हुई। 

अपने नाट्य कर्म की यात्रा और बाधाओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा  " विद्यालय में पढ़ने के दौरान विद्यालय के कार्यक्रम में नाटक होना तय था पर ग्रामीणों के विरोध के कारण वो नाटक नहीं हो पाया उसी समय से नाटक में कार्य करने की इच्छा उत्पन्न हुई और निरन्तर इस कर्म में 50 साल से कार्यरत हूँ।अभिनेता या अभिनेत्री टाइप्ड नहीं होते हैं वो अपने किरदारों पर बना दिये जाते हैं। इनका अंतिम नाटक "अंतिम प्रश्न" और "बड़का साहेब" है जो कि सामान्य नाटकों से भिन्न था। 

अपने लेखन कर्म पर बात करते हुए डॉ. प्रेमलता मिश्र ने कहा कि  "एगो छलीह सिनेह पुस्तक" फरमाईशी या शौकिया नहीं था । मेरे मन में जितनी उधेड़बुन थी उसे शब्दों का रूप दिया। समाज को जिस समय जिसकी जरूरत होती है उसके लिए मैं प्रतिबद्ध रहती हूं। उस समय रंगमंच में महिलाओं के प्रवेश की आवश्यकता थी मैंने इसे चुनौती की तरह स्वीकार किया । अबके समय में साहित्य लेखन महिलाओं के लिए चुनौती के रूप में है । उन्होंने कहा कि मैं किसी व्यक्ति के लिए नहीं भाषा और संस्कृति के लिए कार्य करती हूं। इसकी मुझे बहुत आत्मसंतुष्टि है। संस्था मुख्य होती है व्यक्ति नहीं व्यक्ति तो आते जाते रहते है लेकिन संस्थाएं अडिग रहती है।"  अपने वैचारिक पक्ष पर  बोलते हुए उन्होंने कहा कि व्यक्ति भाव शून्य नहीं हो सकता भावुकता तभी दिग्भ्रमित करती है जब कोई कार्य पूर्ण नहीं हो सके।

इस कार्यक्रम में प्रियंका मिश्रा, धीरेंद्र कुमार झा, रामानन्द झा रमण, बटुक भाई, कथाकार अशोक, रजनीश प्रियदर्शी, विष्णु नारायण, रंजन झा, आनंद कुमार आदि मौजूद थे।