नई दिल्लीः बिना संवेदनशीलता के की गई पत्रकारिता मानवता के लिए बेहद हानिकारक है. पत्रकारिता में संवेदना लाना इसलिए आवश्यक है कि वर्तमान में मीडिया की पहुंच बहुत व्यापक है और उसका तत्कालिक प्रभाव भी बहुत तेजी से सामने आता है. ये विचार वरिष्ठ पत्रकार, संपादक, शिक्षाविद एवं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के पूर्व अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित 'मीडिया और साहित्य: सूचना एवं संवेदना' विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किए. शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी की पत्रकारिता अपने अतीत में साहित्यिक पत्रकारिता से भरपूर थी. उन्होंने दावा किया कि भारत में पत्रकारिता साहित्य से ही परिष्कृत होकर निकली है, अतः वह हमेशा संवेदना से पूर्ण रही है. खास बात यह कि साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित साहित्योत्सव की कुछ अन्य चर्चाओं में भी ऐसे ही स्वर ध्वनित हुए.
संयुक्ता दासगुप्ता की अध्यक्षता हुए एक सत्र, जिसमें अकु श्रीवास्तव, बलदेवराज गुप्ता, डी. उमापति एवं मधु आचार्य जैसे पत्रकार व अध्यापक शामिल थे में भी वक्ताओं ने पत्रकारिता के गौरवशाली अतीत के साथ वर्तमान चुनौतियों की चिंता की. अकु श्रीवास्तव ने पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारा पूरा नजरिया उदारवाद आने के बाद बदल गया है. हम केवल निंदा कर रहे हैं लेकिन कोई समाधान नहीं ढूंढ़ रहे हैं. समाचारों को तुरंत कहने की जल्दी में हम तथ्यों की जांच भलीभांति नहीं कर रहे हैं और यही विवाद का कारण है. बलदेवराज गुप्ता ने समाचार पत्रों की बिगड़ती भाषा पर गहरी चिंता जताई. मधु आचार्य ने समाज और सत्ता के ढाँचे में आए बदलाव की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इस कारण पूरे समाज की संवेदनाएं नष्ट हुई हैं.