लखनऊ: रिमझिम बारिश के बीच सर्द हुए मौसम को गर्मागर्म राजनीतिक बहस से जैसे आंच मिल गई हो। क्षेत्रीय राजनीति का भविष्य। दैनिक जागरण संवादी के एक सत्र में इस अहम और मौजूं विषय पर पूरे वक्त विचारों के बादल उमड़तेे-घुमड़ते रहे।
मंच पर राजनीति के चार मर्मज्ञ थे। लेखक और पत्रकार विजय त्रिवेदी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव, प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी और दैनिक जागरण, लखनऊ के स्थानीय संपादक सद्गुरु शरण अवस्थी।
सत्र के मॉडरेटर के तौर पर सद्गुरु शरण अवस्थी ने मुद्दे की नब्ज पर हाथ रखा तो क्षेत्रीय राजनीति की रीति-नीति, दिशा-दशा आईने की तरह साफ हो गई। बात निकलकर आई-क्षेत्रीय दल लोकतंत्र की रीढ़ है। राष्ट्रीय दल उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। बहस परवान चढ़ी तो क्षेत्रीय दलों की एक बड़ी विसंगति भी जुबां पर आ गई। यह विसंगति है-इन पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का कमजोर होना। लब्बोलुआब यह कि क्षेत्रीय दल जब तक परिवारवाद से उबरेंगे नहीं, समाजवाद का सपना अधूरा का अधूरा रह जाएगा। यही नहीं, उन्हें इससे भी बचना होगा कि सत्ता के लिए वे राष्ट्रीय दलों के हाथों इस्तेमाल न हो जाएं।
मंच पर राजनीति के चार मर्मज्ञ थे। लेखक और पत्रकार विजय त्रिवेदी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव, प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी और दैनिक जागरण, लखनऊ के स्थानीय संपादक सद्गुरु शरण अवस्थी।
सत्र के मॉडरेटर के तौर पर सद्गुरु शरण अवस्थी ने मुद्दे की नब्ज पर हाथ रखा तो क्षेत्रीय राजनीति की रीति-नीति, दिशा-दशा आईने की तरह साफ हो गई। बात निकलकर आई-क्षेत्रीय दल लोकतंत्र की रीढ़ है। राष्ट्रीय दल उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। बहस परवान चढ़ी तो क्षेत्रीय दलों की एक बड़ी विसंगति भी जुबां पर आ गई। यह विसंगति है-इन पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का कमजोर होना। लब्बोलुआब यह कि क्षेत्रीय दल जब तक परिवारवाद से उबरेंगे नहीं, समाजवाद का सपना अधूरा का अधूरा रह जाएगा। यही नहीं, उन्हें इससे भी बचना होगा कि सत्ता के लिए वे राष्ट्रीय दलों के हाथों इस्तेमाल न हो जाएं।
पत्रकार और लेखक विजय त्रिवेदी से मुखातिब सद्गुरु शरण ने कहा कि पिछले तीन चुनाव 2014, 2017 और 2019 में क्षेत्रीय दलों की स्थिति बेहद कमजोर रही। क्या ये दल ताकत खोते जा रहे? जवाब में विजय ने मुल्ला नसीरुद्दीन से जुड़ा वह मजाकिया किस्सा सुनाया, जिसमें मुल्ला साहब कमरे में खोई अपनी चाबी आंगन में इसलिए तलाश रहे थे, क्योंकि कमरे में अंधेरा था और आंगन में उजाला। यही हाल दलों का है। राष्ट्रीय दल उजाले में चाबी ढूंढ़ रहे हैैं जबकि क्षेत्रीय अंधेरे में। वह क्षेत्रीय दलों की ताकत तो नजरअंदाज करने के पक्षधर नहीं हैैं। इन दलों की दशा खराब होने की वजह बेबाक अंदाज में बताई। किसी दल का नाम लिए बगैर कटाक्ष करते हैैं-यूपी में कब साथ पसंद हो जाता है, कब स्टेट गेस्ट हाउस कांड भूलकर दो दल गठजोड़ कर लेते हैैं, यह कोई समझ नहीं सकता। राष्ट्रीय दल इन दलों को इस्तेमाल कर लेते हैैं। कहा कि क्षेत्रीय दलों की अहमियत यह है कि कई राज्यों में रीजनल पार्टियां या तो सत्ता में हैैं या फिर वे दूसरे नंबर पर हैैं।
अब बारी थी सपा के राष्ट्रीय और प्रवक्ता, अखिलेश के बेहद करीबी माने जाने वाले राजेंद्र चौधरी की। उनसे सवाल किया गया कि क्या वोटर आपको नकार रहे हैैं? जवाब आया कि हम वोट की नहीं, विचार की राजनीति करते हैैं। वोट तो एक माध्यम है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीयता एक तकनीकी शब्द है। चुनाव आयोग हर उस दल को राष्ट्रीय दल का दर्जा दे देता है, जिसे चार राज्यों में छह फीसद वोट मिलते हैैं। उन्होंने बापू, लोहिया और चौ. चरण सिंह का जिक्र करते हुए कहा कि गांव के स्तर का नेता राष्ट्रीय फलक पर होगा तो राष्ट्र की स्थिति सुधरेगी।
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने मुद्दे पर सधे अंदाज में बात रखी। कहा कि यह क्षेत्रीय राजनीति की ही ताकत है कि नागरिकता के मुद्दे पर पूर्वोत्तर उबल रहा है। हम राजनीति तौर पर हार सकते हैैं, वैचारिक तौर पर नहीं। सवाल आया कि आखिर बीते लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन क्यों हुआ? सुरेंद्र ने माना कि बीजेपी का डर सबको था। अभी वह डर कायम है। दावा किया कि वोट किसी का कम नहीं हुआ है। कहा कि जैसे ही धर्म की राजनीति फीकी पड़ेगी, क्षेत्रीय दल उभरेंगे। वजूद की लड़ाई में वे क्षेत्रीय दल ही जीतेंगे, जो बेहतर काम करेंगे।
श्रोताओं ने भी किया संवाद
विषय पर विमर्श के दौरान श्रोताओं का जुड़ाव शिद्दत से रहा। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बात-बात में कह दिया कि आपातकाल में अखबारों की कोई भूमिका नहीं थी। इस पर दर्शक दीर्घा से ओजपूर्ण आवाज में बिपिन कुमार शुक्ला ने अखबारों की अहम भूमिका का तथ्य पूर्ण विवरण रख दिया। इस पर सपा प्रवक्ता को मानना पड़ा कि आपातकाल के दौरान अखबारों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उनके अलावा डॉ. अमिता सिंह, सपा नेता इश्तियाक लारी ने भी वक्ताओं के सामने अपनी जिज्ञासाएं रखीं।
– पवन तिवारी
अब बारी थी सपा के राष्ट्रीय और प्रवक्ता, अखिलेश के बेहद करीबी माने जाने वाले राजेंद्र चौधरी की। उनसे सवाल किया गया कि क्या वोटर आपको नकार रहे हैैं? जवाब आया कि हम वोट की नहीं, विचार की राजनीति करते हैैं। वोट तो एक माध्यम है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीयता एक तकनीकी शब्द है। चुनाव आयोग हर उस दल को राष्ट्रीय दल का दर्जा दे देता है, जिसे चार राज्यों में छह फीसद वोट मिलते हैैं। उन्होंने बापू, लोहिया और चौ. चरण सिंह का जिक्र करते हुए कहा कि गांव के स्तर का नेता राष्ट्रीय फलक पर होगा तो राष्ट्र की स्थिति सुधरेगी।
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने मुद्दे पर सधे अंदाज में बात रखी। कहा कि यह क्षेत्रीय राजनीति की ही ताकत है कि नागरिकता के मुद्दे पर पूर्वोत्तर उबल रहा है। हम राजनीति तौर पर हार सकते हैैं, वैचारिक तौर पर नहीं। सवाल आया कि आखिर बीते लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन क्यों हुआ? सुरेंद्र ने माना कि बीजेपी का डर सबको था। अभी वह डर कायम है। दावा किया कि वोट किसी का कम नहीं हुआ है। कहा कि जैसे ही धर्म की राजनीति फीकी पड़ेगी, क्षेत्रीय दल उभरेंगे। वजूद की लड़ाई में वे क्षेत्रीय दल ही जीतेंगे, जो बेहतर काम करेंगे।
श्रोताओं ने भी किया संवाद
विषय पर विमर्श के दौरान श्रोताओं का जुड़ाव शिद्दत से रहा। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बात-बात में कह दिया कि आपातकाल में अखबारों की कोई भूमिका नहीं थी। इस पर दर्शक दीर्घा से ओजपूर्ण आवाज में बिपिन कुमार शुक्ला ने अखबारों की अहम भूमिका का तथ्य पूर्ण विवरण रख दिया। इस पर सपा प्रवक्ता को मानना पड़ा कि आपातकाल के दौरान अखबारों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उनके अलावा डॉ. अमिता सिंह, सपा नेता इश्तियाक लारी ने भी वक्ताओं के सामने अपनी जिज्ञासाएं रखीं।
– पवन तिवारी