नई दिल्ली: हिंदी में ऐसे बहुत कम कहानीकार हैं, जिनसे उनके पाठक शिकायत करते हैं कि आपकी कहानी समझ में नहीं आई, ऐसे ही कहानीकारों में एक संजय सहाय हैं जो हमेशा अपने पाठकों का इम्तहान लेते हैं और साथ ही अपने पाठक को छूट भी देते हैं कि वे उस स्पेस को भरें.राजकमल प्रकाशन द्वारा ऑक्सफ़ोर्ड बुकस्टोर में संजय सहाय के कहानी-संग्रह मुलाक़ातऔर सुरंगपर आयोजित बातचीत के दौरान यह बात वरिष्‍ठ लेखक असग़र वजाहत ने अपने विशेष वक्‍तव्‍य में कही. उनका कहना था कि संजय सहाय की कहानियां कथा-वस्तु और लेखक के द्वंद्व की कहानियां हैं. इनका अनुभव-संसार बहुत व्यापक है. व्यापक अनुभव-संसार में रची गई ये कहानियां आपसे अलग-अलग तरह की मांग करती हैं. इसीलिए इनकी कहानियों में बहुत विविधता है. इससे पहले संजय सहाय से सुपरिचित कथाकार वंदना राग और आलोचक संजीव कुमार ने उनकी कहानियों पर विस्‍तार से बातचीत की.

संजीव कुमार ने कहा कि संजय सहाय की कहानियां एक ही तरह की और एक ही समय की कहानियां नही हैं. नब्बे के दशक से लेकर 2018 के बीच की ये कहानियां यह सिद्ध करती हैं कि कहानीकार में अलग-अलग तरह की कहानियां लिखने की कौशलता है. ये बहुत ही दुरुस्त एवं सुसंपादित कहानियां हैं. संरचना की दृष्टि से भी ये कहानियां एक रुझान का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं मगर अंतर्वस्तु की दृष्टिसे निश्चित तौर पर एक रुझान का प्रतिनिधित्व करती हैं. वंदना राग ने कहा कि बहुआयामी और बहुपरतीय कहानियां संजय सहाय की ताक़त हैं. पुराने शब्दों को सामाजिक संरचना में कैसे ढालना है, इन्हें अच्छी तरह आता है. समय के साथ हिंदी कहानी ने जो संवेदनात्मक और संरचनात्मक संश्लिष्टता अर्जित की है, इनकी कहानियां उसकी उम्दा मिसाल हैं. प्रस्तुति का ढंग ऐसा है, मानो सब कुछ आपके सामने घटित हो रहा है. संजय सहाय ने कहानियों से जुड़े अपने लेखन-अनुभव को साझा करते हुए कहा कि मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि कहानी लिखते समय एक बड़े दायरे को पकड़ा जाए और कहानी के पात्र किस दायरे और भाषा से आते हैं, उसी परिवेश व लहजे को कहानियों में पिरोया जाए. अधिकतर कहानियों में धर्म और राजनीति के ख़िलाफ़ तथ्यों पर अपने विचार रखते हुए संजय सहाय ने कहा कि मैं मानता हूं, मनुष्य एक पैदाइशी राजनीतिक जीव है और वह जीवन-भर किसी न किसी रूप में राजनीति करता रहता है. धर्म से बड़ा पाखंड कुछ नहीं होता, और मैं नास्तिक हूं. ( प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)