श्री कृष्ण पूर्ण अवतार हैं और सनातन परंपरा के एक मत के अनुसार सभी सोलह गुणों से युक्त भगवान. श्री कृष्ण रणछोड़ भी हैं, तो माखनचोर भी. वह सखा भी हैं, तो सारथी भी. वह नटवर नागर है तो वंशी बजैया भी. नारायण के वह ऐसे अवतार हैं, जिन्होंने अपने में शृंगार रस के गुणों को भी समाहित किया. इसीलिए हिंदी साहित्य की समूची भक्ति परंपरा उन पर आधारित रचनाओं से भरी पड़ी है. कृष्ण के प्रति प्रेम की गहन अनुभूति से समूची भक्ति परंपरा का एक विशिष्ट चरित्र है. कृष्णाश्रयी शाखा के जिन कवियों ने श्री कृष्ण पर पद लिखे उनमें नरसी, मीरां, वल्लभाचार्य, विद्यापति, चंडीदास, सूरदास, हितहरिवंश, हरिदास, रसखान, नरोत्तमदास आदि शामिल हैं. सूरदास का समूचा जीवन ही श्री कृष्ण लीला के वर्णन से भरा था. 'सूरसागर' उनका प्रधान और श्रेष्ठ ग्रंथ है. उनके पांच ग्रंथों में 'साहित्य-लहरी' में दृष्टिकूट पद हैं और संभवतः ये नंददास को साहित्य का शास्त्रीय ज्ञान कराने के निमित्त रचे गए थे. इसे श्री कृष्ण-काव्य-धारा भी कहा जाता है और इस धारा की भाषा ब्रज है .नर-नारी की साधारण प्रेम-लीलाओं को राधा-कृष्ण की अलौकिक प्रेमलीला द्वारा व्यंजित करके जन-मानस को रसाप्लावित करने का माद्दा इसी परंपरा के कवियों में था.
इसीलिए हिंदी काव्य-धारा में ज्ञान और कर्म के स्थान पर भक्ति और प्रेम को प्रधानता दी गई है. अगर केवल संत सूरदास की रचनाओं को ही देखें तो 'सूर सारावली' एक प्रकार से सूरसागर का सार है. 'नल-दमयंती' और 'ब्याहलो' अप्राप्य हैं. सूरसागर आदर्श गीत-काव्य है और 'भागवत' के आधार पर लिखा गया है. वह 'भागवत' की भांति बारह स्कंधों में विभाजित है, किन्तु यह प्रबंध काव्य नहीं है. भागवत के 335 अध्यायों में जहां केवल 90 अध्याय कृष्णावतार विषयक हैं, वहां सूरसागर में 4132 पदों में से 3642 पदों में कृष्ण-लीला का गान है. श्री कृष्ण-लीला में मनुष्य जीवन का सर्वांग उपस्थित होता है. बाकी की अवशिष्ट रचना में अन्य अवतारों की कथा और प्रथम स्कन्ध में 219 विनय के पद हैं. 'भागवत' में कृष्ण की ब्रज-लीला के 49 अध्याय और द्वारिका-लीला के 41 अध्याय पर सूरसागर में गोकुल और मथुरा की लीला के 3494 पद हैं और उत्तरकालीन लीला से संबंधित 138 पद. इसीलिए सूरदास के बारे में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “वात्सल्य के क्षेत्र में जितना अधिक उद्धाटन सूर ने अपनी बंद आंखों से किया, इतना किसी ओर कवि ने नहीं. इन क्षेत्रों का तो वे कोना-कोना झांक आये. जाहिर है श्री कृष्ण की गाथा न होती तो न जाने कितने रसों से वंचित रह जाता हमारा साहित्य.