नई दिल्ली: हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष डॉ नामवर सिंह की याद में जब राजकमल प्रकाशन ने त्रिवेणी कला संगम में स्मृति सभा का आयोजन किया तो उसमें नामवर सिंह के इतने चाहने वाले जुटे और सबके पास उनसे जुड़ी इतनी यादें थीं कि चार घंटे का समय भी कम पड़ गया. इस स्मृति सभा में अशोक वाजपेयी, विश्वनाथ त्रिपाठी, निर्मला जैन, पुरुषोत्तम अग्रवाल, हरीश त्रिपाठी, मैनेजर पाण्डेय, नामवर सिंह की पुत्री समीक्षा ठाकुर, ममता कालिया, अनामिका, ओम थानवी सरीखे साहित्यकारों व स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव, राज्यसभा के उपसभापति  हरिवंश ने उन्हें याद किया. साथ ही परिवार से उनके पुत्र विजय सिंह, बेटी समीक्षा व दामाद ने अपनी स्मृतियां साझा कीं.  स्मृति सभा की शुरुआत में कबीर की रचनाओं का गायन हुआ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि नामवर सिंह बहुत अच्छे गायक भी थे. बिल्कुल पिघले हुए सोने की तरह ठोस आवाज़. नामवर के दिल्ली आने के बाद यहां साहित्यिक गतिविधियां काफी बढ़ गईं. अशोक वाजपेयी ने कहा कि नामवर का जीवन साहित्य से नियमित और निर्मित था. उन्होंने जितना लिखा उससे कहीं अधिक बोला. 'साहित्य में रचना और आलोचना सहचर होंगे' यह बात नामवर की सबसे अधिक प्रभावशाली बात थी.

निर्मला जैन का कहना था कि मुझे डांटने की हिम्मत बहुत कम लोगों में होती थी, अब भी नहीं है, लेकिन मैंने नामवर जी से बहुत डांट खाई है. उनके पास स्थितियों से लड़ने की अद्भुत क्षमता थी. किताब के बगैर वो आराम से बैठ नहीं सकते थे, हर पल उनके पास कोई न कोई किताब या पत्रिका जरूर होती थी. नामवर सिंह के बेटे विजय सिंह ने पारिवारिक यादें साझा करते हुए कहा कि काशीनाथ सिंह भाषा विज्ञान पर शोध कर रहे थे. एक दिन पिताजी ने दीवाने-ग़ालिब पढ़ने के बाद काशी चाचा को बुलाया और कहा भाषा विज्ञान तो बहुत शुष्क विषय है, कभी ग़ालिब को भी पढ़ लिया करो. और आज मुझे पता चला कि दीवान में ग़ालिब ने नामवार नाम का भी जिक्र किया है. लगता है उनको मेरा नाम कहीं-कहीं याद रहा होगा. बेटी समीक्षा ठाकुर ने कहा मेरे पिता मेरे दोस्त थे. वो मेरा बहुत ज्यादा ख्याल रखते थे. मैं उनके पास बहुत सालों के बाद रहने आयी थी इसलिये वो कहते कि मैं तुम्हारे साथ क्षतिपूर्ति दीर्घीकरण कर रहा हूं. जो प्यार पहले नहीं दे सका वो अब देने की कोशिश कर रहा हूं. वो रास्ते में मुझे सरोज स्मृति गाकर सुनाया करते थे. राज्यसभा उपाध्यक्ष हरिवंश ने कहा, 'एक ऐसा विद्यार्थी जिसको सुनने के लिये हर कोने से हर फैकल्टी के लोग इकट्टा हो जाएं ऐसा कोई दूसरा मैंने नहीं देखा. उनकी जानकारी भाषा के इतर समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र में भी गहरी थी. वो दुनिया में हो रहे बदलाव के विषय में भी गहरी जानकारी रखते थे.' स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने कहा, 'मुझसे कोई कहे कि हिंदी भाषा की मूर्ति उकेरी जाए तो मैं कहूंगा नामवर जब बोलते थे वो हिंदी भाषा की मूर्ति है. मेरे लिये आज भी 21वीं सदी के राजनीतिक चिंतन की तलाश दूसरी परंपरा की खोज है.'