गुरुग्राम: मौजूदा दौर के सर्वाधिक चर्चित और समादृत कथाकार नरेंद्र कोहली जीवन के साथ-साथ लेखन में भी शुद्धता के हिमायती हैं. पिछले दिनों कलम गुरुग्राम नामक कार्यक्रम में प्रख्यात व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय से बातचीत और दर्शकों से सवाल-जवाब के क्रम में कई बार उनके यह विचार सामने आए. उनका कहना था शुद्ध हिंदी नहीं लिखने वाले सरस्वती का अपमान करते हैं. उनका कहना था कि लेखन का संबंध एकाग्रता से है, जो लेखक को साधना की ओर ले जाती है. जिसके अंदर अपने-पराए का भाव है वह साहित्यिक लेखन नहीं कर सकता. किसी भी साहित्यिक लेखन की शुरुआत कविता से होती है का समर्थन करते हुए भी कोहली ने यह भी माना कि उनकी शुरुआत गद्य से ही हुई थी. व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय के सवालों पर अपना मत व्यक्त करते हुए प्रख्यार कथाकार नरेंद्र कोहली ने साहित्य से जुड़े तमाम पहलुओं को छुआ.
उनका कहना था पुस्तकों की लोकप्रियता का पैमाना उसकी बिक्री हो सकती है लेकिन उसकी स्वीकार्यता तो सालों में तय होती है। स्वयं के उदाहरण से उन्होंने साहित्य जिज्ञासुओं को यह समझाया कि उन्होंने कभी आलोचकों की परवाह नहीं की, क्योंकि उनके पास प्रकाशकों और पाठकों की कमी कभी नहीं रही. उन्होंने हिंदी में रामायण, गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया और जब राम कथा लिखी तो लोगों ने भगवान का मानव रूप में चित्रण करने पर ऐतराज जाहिर किया. पर उन्हें खुशी है और तथ्य यही है कि जिन लोगों ने रामायण और गीता नहीं पढ़ी थी, उन्हें भी उनकी रचनाओं से पौराणिक कथानकों का भान हुआ. याद रहे कि नरेंद्र कोहली पर अब तक डेढ़ सौ से अधिक छात्रों ने शोध किया है और आजादी के बाद हिंदी साहित्य में अपने योगदान के लिए वह व्यास सम्मान और पद्मश्री से सम्मानित हो चुके हैं. इस कार्यक्रम की शुरुआत में अराधना प्रधान ने इसके उद्देश्यों और भविश्य की योजना पर बात की। वरिष्ठ कथाकार भगवानदास मोरवाल ने स्मृति चिन्ह देकर नरेन्द्र कोहली का सम्मान किया। वहीं व्यंग्यकार और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास में सहायक संपादक ललित मंडोरा ने प्रेम जनमेजय को स्मृति चिन्ह प्रदान किया। कार्यक्रम के समापन के बाद वहां उपस्थिति सभी श्रोताओं को नरेन्द्र कोहली की पुस्तक वरुणपुत्री भेंट स्वरूप दी गई।