वाराणसीः साहित्यकार स्मृतिशेष प्रोफेसर शुकदेव सिंह की 85 वीं जयंती काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मालवीय मूल्य अनुशीलन सभागार में धूमधाम से मनाई गई. इस अवसर पर कबीर विवेक परिवार एवं मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र के द्वारा प्रख्यात लेखिका, कवियत्री और महिला महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी को साल 2018 के ‘शुकदेव सिंह स्मृति सम्मान‘ से सम्मानित किया गया. प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी, जो इस समारोह की मुख्य अतिथि भी थीं, ने कहा कि संत साहित्य में गुरु होना तानाशाह होना नहीं होता है. उन्होंने प्रोफेसर शुकदेव सिंह से जुड़े अनेक संस्मरण सुनाए और उनके रचनाक्रम पर अपनी बात कही. शुकदेव सिंह स्मृति सम्मान मिलने पर खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए अपने घर में सम्मानित होने की तरह अनमोल है. कबीर विवेक परिवार और आदरणीया डॉ भगवंती सिंह जी के प्रति बहुत आभारी हूं जिन्होंने मुझे इस योग्य समझा.
इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी का विषय ‘संत साहित्य एवं भारतीय जनमानस‘, जिस पर अनेक विद्वानों ने अपने विचार रखे. अपने स्वागत उद्बोधन में प्रोफेसर वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने कहा कि संत साहित्य को अगर देखना और परखना हो तो हमें प्रोफेसर शुकदेव सिंह की रचनाओं से एक नई दृष्टि मिलती है.डॉ. प्रभाकर सिंह ने कहा कि शुकदेव सिंह की जैसी रचना है वो उस तरह से विज्ञापित नहीं हो पाए जैसे अन्य संत आलोचक हो गए. संत कविता को देखने की जो दृष्टि शुकदेव जी के यहां दिखाई पड़ती है वो अत्यंत प्रासंगिक है. प्रो.आशीष त्रिपाठी कहना था कि- संत साहित्य में बोध की एक परंपरा है, जिसमें भारतीयता का निर्माण भक्ति आंदोलन से देखा जा सकता है. भारतीय विभिन्नता संवाद करती हैं और आपस में गुथी हुई है, इसलिए संत साहित्य संवाद का साहित्य है. प्रो.श्रद्धा सिंह ने संत साहित्य का विकास और जो परम्परा रही है उस पर बात करते हुए अनेक कविताओं को उदाहरणतः प्रस्तुत किया और कहा कि आचरण की शुद्धता संत कवियों का मुख्य उद्देश्य रहा है.
प्रो. सदानंद शाही का कहना था कि संत साहित्य और जनमानस की जो सामंजस्य है उसे शुकदेव जी ने बहुत करीने से अपनी रचनाओं में उकेरा है. कबीर एवं अन्य कवियों की कविताएं समाज पर कैसे अपनी छाप छोड़ती हैं उसपर अपना पक्ष रखा. प्रो.रामकीर्ति शुक्ल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भारतीय समाज में संतों का जो योगदान है, वो अविस्मरणीय है, क्योंकि कबीर और तुलसी इसके उदाहारण के रूप में आज भी गांव में मौजूद हैं. प्रो.मनोज सिंह ने अपनी बात रखते हुए शुकदेव सिंह के अनेक संस्मरण और रचनाओं को ध्वनित किया और जनमानस को शुकदेव जी ने किस प्रकार पकड़ा है उसपर प्रकाश डाला.
प्रो.बलिराज पांडेय ने कहा कि संत साहित्य को आज याद करना अपने समय और समाज को ठीक-ठीक से समझना है. प्रो शुकदेव को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनका संत मन ही संत साहित्य की लेखनी में मौजूद है. प्रो.अवधेश प्रधान का कहना था कि भारतीय जनमानस अपने आप को संत साहित्य से आज भी जोड़े हुए है, इसका उदाहरण हमें शुकदेव सिंह में दिखाई देता है, उनका पुरा मन संत साहित्य को आज भी सुगम बनाने में हमारे सामने मौजूद है, संत साहित्य की प्रासंगिकता आज और भी ज्यादा बलवती हो गयी है आज उसकी अवधारणा हमारे समाज मे सर्वाधिक है, अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो.कमलेश दत्त त्रिपाठी ने कहा कि संतों की एक अपनी परंपरा रही जिसमें कबीर और तुलसीदास एवं अन्य कवि हुए,जिनका योगदान भारतीय जन और साहित्य को नई दृष्टि दिया जिसमें संवाद की संभावना आज भी है.
प्रोफेसर शुकदेव सिंह की पत्नी भगवती सिंह का कहना था कि अपने आचार्य जीवन में सिंह ने हजारों छात्रों को विद्या दान किया और सैकड़ों छात्रों को शोध कराया. वर्तमान छात्रों और शिक्षकों को उनके जीवन से खूब पढ़ना और पढ़ाना सीखना चाहिए. इस मौके पर शिवि तिवारी और उनके साथियों ने कुलगीत के साथ कबीर गायन भी प्रस्तुत किया, जिसके बाद कबीर वाणी को प्रोफेसर शुकदेव घराने की अंशिका ने अद्भुत तरीके से गायन किया. कार्यक्रम का संचालन शुभांगी श्रीवास्तव ने एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ.ज्योत्स्ना श्रीवास्तव ने किया.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में एक से बढ़ कर एक दिग्गज आचार्य हुए, उन्हीं में से एक थे प्रोफेसर शुकदेव सिंह. शुकदेव सिंह का जन्म पास के जिला गाजीपुर में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा गाजीपुर में करने के बाद उन्होंने स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की डिग्री काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ली और वहीं अध्यापन कार्य करने लगे. यों तो उन्होंने आचार्य के पद पर रहकर अनेक पुस्तकें लिखीं और संपादित किया पर संत साहित्य उन्हें बेहद प्रिय था और उसमें भी कबीर उनके खास प्रिय रहे हैं.