नई दिल्लीः सोहनवीर सिंह प्रजापति स्मृति प्रथम चाक कविता सम्मान 'रिक्त स्थान एवं अन्य कविताएं' के लिए शिवप्रसाद जोशी को दिया गया. सम्मानित कवि शिवप्रसाद जोशी ने कहा कि चाक कविता सम्मान कार्यक्रम की शुरुआत जिस दिन से हो रही है, वह ऐतिहासिक महाड़ मुक्ति-संग्राम के गौरवशाली सिलसिले से भी जुड़ रहा है. इसी दिन 1927 को बाबा साहब ने उस महान संघर्ष का आगाज़ किया था. इनसानी बराबरी और गरिमा के संघर्ष में एक्टिविस्टों की भूमिका के प्रति सम्मान जताते हुए उन्होंने रचनाकार की भूमिका को लेकर महत्त्वपूर्ण बातें रखीं. उन्होंने सवाल किया कि लेखक के पास रचनात्मक उत्कृष्टता के अलावा क्या औजार होंगे और फिर इस बात में जवाब की तरह जोड़ा- विवेक और सहज बोध के साथ-साथ हमें साहस की दरकार है. साहस, संघर्ष, प्रेम या इनसानियत के लिए हमें वर्चस्व और प्रभुत्व के हथकंडों से खुद को बचाए रखना होगा. तमाम क़िस्म की निरंकुशताओं का विरोध करना होगा. उन्होंने टैरी इगलटन, अरुंधति रॉय, स्नोडन, अंसाजे, मार्क्स, जॉन जर्जन, मुक्तिबोध, शमशेर, विलियम फॉक्नर, मंगलेश डबराल आदि देश-दुनिया के लेखकों, दार्शनिकों, एक्टिविस्टों के हवाले देते हुए वर्चस्वशाली शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष, प्रेम और रचना प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं पर रौशनी डाली.  यह पुरस्कार कवि रमेश प्रजापति ने अपने पिता की स्मृति में आरम्भ किया है. कार्यक्रम की अध्यक्षता हरिनारायण ने की.

मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने कहा कि चाक सम्मान का अर्थ सिर्फ़ यह नहीं है कि एक रचनाकार ने अपने पिता की स्मृति में एक सम्मान शुरू किया है. इस सम्मान के नाम में उनके श्रमशील-शिल्पकार पिता का चाक कविता के साथ जुड़ता है, तो इसका श्रम-सृजन की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक परंपरा और सांस्कृतिक-सृजनात्मक पहचान से रिश्ता सामने आता है. उन्होंने कबीर और रैदास जैसे कवियों को याद करते हुए कहा कि श्रम-सृजन का संस्कृति और सृजन से गहरा रिश्ता रहा है. दलित लेखक संघ की अध्यक्ष व स्त्रियों व बहुजन समाज के संघर्षों की चेतना से जुड़े मसलों पर मुखर और बेबाक स्वर वालीं कवि अनीता भारती ने महाड़ आंदोलन से जुड़े इस ऐतिहासिक दिन के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि एक श्रमशील रचनाकार के श्रमशील पिता की स्मृति में हो रहे इस आयोजन का इस तरह एक ख़ास अर्थ भी है. उन्होंने शिव प्रसाद जोशी की कविताओं को इनसानी संघर्षों की तरफ़दारी के लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि रमेश प्रजापति की रचनाओं में भी उनके पिता के श्रमशील और शिल्पकार व्यक्तित्व की गरिमा को महसूस किया जा सकता है.  उपेन्द्र कुमार, सन्तोष पटेल, रजत कृष्ण, भास्कर चौधरी, मनु स्वामी, विपुल शर्मा, तरुण गोयल, अश्वनी खण्डेलवाल, शिवकुमार, प्रबोध उनियाल, प्रतिभा त्रिपाठी, शालिनी जोशी, कमल प्रजापति, ममता प्रजापति, श्रुति, वागीश, शिखा कौशिक, योगेन्द्र सिंह, डॉ बसन्त कुमार, सुनील शर्मा, रामकुमार रागी, सुशीला शर्मा, विजया गुप्ता, बीएस त्यागी, अमरीश त्यागी, धीरेश सैनी, अरविंद कुमार, प्रतिभा त्रिपाठी, ए कीर्तिवर्धन, प्रदीप जैन, आरएम तिवारी, जेपी सविता, सुशीला शर्मा, परमेन्द्र सिंह, परविंदर कौर, शिशुपाल सिंह, भूपिंदर कौर, कमल त्यागी आदि उपस्थित रहे. संचालन रोहित कौशिक ने किया.