जयपुर: समानांतर लिटरेचर फेस्टिवल में गीतकार इरशाद कामिल ने अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि जब उनकी नज़्मों की किताब आई थी उसमें बहुत सारी नज़्में ऐसी थीं जो गीत लिखने की तैयारी में लिखे गए थे। 'नादान परिंदे' की तैयारी में मैंने गाने लिखे।
इरशाद कामिल ने बताया कि उनकी एक फ़िल्म थी 'रांझणा'। इसमें गाना है ' ऐसे न देखो जैसे पहले देखा ही नहीं , तुमसे मिलने जी उम्मीद में खुद से बिछड़ गया अब नहीं मिलूंगा। ये मुझे बड़ी जनवादी लाइन लगती है।"
फ़िल्म निर्देशक इम्तियाज से अपने संबंधो की बात करते हुए इरशाद कामिल ने कहा " इम्तियाज के साथ मेरी ट्यूनिंग काफी अच्छी है। फ़िल्म ' जब वी मेट' में धुनों को सुनकर मैंने मेहनत करके लिखी है। इम्तियाज का मैं लिहाज रखता हूं। न वो फ़िल्म खराब करना चाहता है, न मैं अपने गाने खराब लिखना चाहता हूँ। एक गाना लिखा था 'अब तेरे प्यार की जरूरत नही, अब ये भी नहीं कि आम तुझसे मुहब्बत नहीं। हर आदमी आदमी का दुख और तन्हा होना जाती ( निजी) किस्म का होता है। गालिब की तरह लिखा कि आग का दरिया धीरे धीरे यार की सूरत चाहत बदली बदली हो सकती है।"
गानों के बनने के पीछे की क्या घटनाएं होती है ? कुछ फ़िल्म के गाने फ्लॉप होने के कारण उसके अच्छे गीत और भी चर्चा नहीं होती। जैसे ये गाना है " जब भी गांव से मैं शहर हुआ, इतना कड़वा हुआ कि ज़हर हुआ। इरशाद कहते है " ये गाना वहीं खड़ा रहेगा। वक्त की छन्नी में कुछ गाने जो छन के बचकर रह जाएंगे उसमें ये गाना जरूर होगा।"
युनूस खान ने इरशाद से जब ये पूछा कि आपका फेवरिट गाना कौन है और किस तरह लिखा गया है? तो उन्होेने बताया कि " ग़ालिब ने कहा कि गालिब का 'अंदाज़े बयां ' और है। मैं इसे बदलकर कहता हूं 'अहसासे बयां और'। जब आप प्रेम में रहते हैं अपनी प्रेमिका जे बारे में मेंटली एंगेज्ड रहते हैं। जब आपका नज़रिया अलग हो जाता है तो आपका अहसास भी बदलने लगता है। जब शब्द आपके पास हों तो आप अहसासों को अभिव्यक्त कर सकते हैं।"