नई दिल्लीः ऐसे वक्त में जब कोरोना ने समूची दुनिया को रोक सा दिया है और लोग डिजिटल माध्यम के सहारे पढ़ने लिखने को मजबूर हैं, तब भी विश्व पुस्तक दिवस पर किताबों को लेकर लोगों का उत्साह इस बात की तस्दीक करता है कि पढ़ने वालों के लिए किताबों का आकर्षण कभी कम नहीं हो सकता. जिन्हें पुस्तकों में दिलचस्पी है वे किताब पढ़े बिना संतुष्ट नहीं होते भले ही किताब में लिखी बात अन्य मीडिया के माध्यम से वे जान चुके हों. ऐसे लेखक लगातार अपनी पसंदीदा किताब पढ़ उन पर वीडियो, ऑडियो और टिप्पणियां बनाकर पोस्ट भी कर रहे. किसी व्यक्ति की किताबों का संकलन देखकर ही आप उसके व्यक्तित्व का अंदाजा लगा सकते हैं. किताबें ही आदमी की सच्ची दोस्त होती हैं और दोस्तों से ही आदमी की पहचान भी. टोनी मोरिसन ने लिखा था, 'कोई ऐसी पुस्तक जो आप दिल से पढ़ना चाहते हैं, लेकिन जो लिखी न गई हो, तो आपको चाहिए कि आप ही इसे जरूर लिखें.'
23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस इस लिए मनाते हैं कि वर्ष 1616 में एक ऐसे लेखक ने दुनिया को अलविदा कहा था, जिनकी कृतियों का विश्व की समस्त भाषाओं में अनुवाद हुआ. यह लेखक थे विलियम शेक्सपीयर. विलियम शेक्सपीयर ने अपने जीवन काल में तकरीबन 35 नाटक और 200 से अधिक कविताएं लिखीं. साहित्यजगत में विलियम शेक्सपीयर के सम्मान को देखते हुए यूनेस्को ने 1995 में और भारत सरकार ने 2001 में इस दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की. वजह किताबों को लेकर लोगों में प्रेम जगाना महत्त्वपूर्ण था. कहा भी गया है कि अगर कोई यह मानता है कि यह जीवन उसे सिर्फ एक बार ही मिला है तो यह जानिए कि वह पढ़ना नहीं जानता. वास्तव में अगर किताबें न हों तो अक्षरों को अमरता न मिले. ज्ञान न फैले. जानकारी न मिले. शब्द ब्रह्म हैं तो किताबें उनकी दुनिया, इसीलिए भारतीय ही नहीं दुनिया की हर परंपरा में महत्त्वपूर्ण पुस्तकों को उच्च स्थान देने का रिवाज है.