नई दिल्लीः हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार, उपन्यासकार व निबंध लेखक जैनेन्द्र कुमार का 2 जनवरी को जन्मदिन है. वह 2 जनवरी, 1905 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में पैदा हुए थे. प्रारंभिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल में हुई. मैट्रिक प्राइवेट तौर पर पंजाब से तो उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से. पढ़ाई के दौरान विद्यालयों और जगह की विविधता ने उनकी भाषा को काफी मांजा. नौकरी और व्यापार के सिलसिले में वह नागपुर और कोलकाता में भी रहे और फिर इतना कुछ रचा, लिखा कि उन्हें हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप माना जाने लगा. उन्होंने हिंदी गद्य को एक अलग ही विस्तार दिया. हिंदी कहानी ने प्रयोगशीलता का पहला पाठ जैनेन्द्र से ही पढ़ा. कुछ समीक्षक कहते हैं कि जैनेन्द्र का गद्य न होता तो अज्ञेय का गद्य संभव न होता.

हिंदी साहित्य में प्रेमचंद के साहित्य की सामाजिकता के बाद व्यक्ति की निजता और स्वयं निर्मित सामाजिकता को जैनेन्द्र ने अभिव्यक्ति दी. अपनी रचनाओं में उन्होंने रूढ़ियों, प्रचलित मान्यताओं और प्रतिष्ठित संबंधों से हटकर अलग राह चुनी, इसलिए काफी लोकप्रिय भी हुए. उनकी चर्चित रचनाओं में उपन्यास; परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, विवर्त, सुखदा, व्यतीत तथा जयवर्धन; कहानी संग्रह फाँसी, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, एक रात, दो चिड़ियाँ, पाजेब, जयसन्धि तथा जैनेन्द्र की कहानियाँ (सात भाग); निबन्ध संग्रह प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, मंथन, सोच विचार, काम, प्रेम और परिवार, तथा ये और वे; अनुवादित ग्रंथ मन्दालिनी, प्रेम में भगवान तथा पाप अरि प्रकाश शामिल हैं. अपनी साहित्य सेवाओं के लिए उन्हें हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.