बिलासपुरः व्यंग्यकार समाज को विपदाओं से जूझने, व्यवस्था को आइना दिखाने के साथ ही देश को रास्ता दिखाने का काम करता है. मुझे ख़ुशी है कि बिलासा कला मंच ने 'राष्ट्रीय व्यंग्य महोत्सव' का आयोजन बिलासपुर में किया. आज देश के कोने-कोने से यहां आए साहित्यकारों का सम्मान करके मैं स्वयं सम्मानित हुआ हूं. यह उद्गार स्थानीय साई मंगलम में 'बिलासा कला मंच' एवं 'व्यंग्य यात्रा' के सयुंक्त तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय 'राष्ट्रीय व्यंग्य महोत्सव' के समापन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री अमर अग्रवाल व्यक्त किए. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व मंत्री मूलचन्द खण्डेलवाल ने आयोजन की प्रशंसा करते हुए बिलासा कला मंच को इस बात के लिए बधाई दी कि उसने इतने बड़े कार्यक्रम को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सफलता पूर्वक आयोजित किया. विशिष्ठ अतिथि के रूप में व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने 'बिलासा कला मंच', 'व्यंग्य यात्रा', डॉ सोमनाथ यादव व उनकी टीम के साथ देश के 7 राज्य से पधारे साहित्यकारों को भी बधाई दी. समस्त सहभागी साहित्यकारों का बिलासा सम्मान, शाल, स्मृति चिन्ह भी प्रदान किया गया. इसके अलावा डॉ सोमनाथ यादव, द्वारिका प्रसाद अग्रवाल, डॉ अजय पाठक, राजेंद्र मौर्य, हरीश पाठक और धीरेन्द्र अस्थाना को व्यंग्य यात्रा सम्मान से सम्मानित किया गया. डॉ. प्रेम जनमेजय ने सबका अभिनन्दन किया. सांस्कृतिक संध्या में हिलेंद्र ठाकुर, ओमशंकर लिबर्टी एवं कलाकारों द्वारा छत्तीसगढ़ी बारहमासी की रंगझाझर प्रस्तुति से सबका मनमोह लिया. संचालन डॉ सोमनाथ यादव तथा आभार राजेंद्र मौर्य ने किया.
इसके पूर्व व्यंग्य महोत्सव के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में 'व्यंग्य से मुठभेड़ की रचनात्मकता पर विमर्श' और 'छत्तीसगढ़ी व्यंग्य का परिदृश्य' विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ विनय कुमार पाठक ने कहा कि हमारे यहां छत्तीसगढ़ में लोग अपनी बात को ताना के रूप में कह देते हैं, यही व्यंग्य है. यहां 'गारी' दी नहीं जाती बल्कि गाई जाती है. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि व्यंग्य से मुठभेड़ करने वाली रचना ही कालजयी रचना कहलाती है. सभी रचनाओं का आंतरिक रूप तो व्यंग्य ही होता ह. डॉ अजय पाठक ने कहा कि व्यंग्य का प्रचार, प्रसार बड़ी तेजी से हो रहा है, वह स्वागतेय है. इसे अब मान्यता मिल रही है. रमेश सैनी ने कहा कि सत्ता की संवेदनहीनता ने मानवीय मूल्यों की दुर्दशा को सामने ला दिया है. व्यंग्य ही वह विधा है जो इन विषमताओं को समाज तक ला रही है. विनोद साव ने कहा कि व्यंग्य से मुठभेड़ के समय विसंगतियां मौजूद होती हैं. जिस पर व्यंग्य निकलता है. हरिशंकर परसाई जी बड़ी कुशलता से अपनी बात कह जाते थे. सुनील जैन राही ने कहा कि व्यंग्य से मुठभेड़ में रचनात्मक क्रांति होती है, खून नहीं बहता. इस क्रांति में कभी जाति, धर्म या राजनीति आ जाती है. प्रथम सत्र के विमर्श कार्यक्रम का संचालन डॉ संजीव कुमार और आभार बी आर साहू ने किया.द्वितीय सत्र गद्य व्यंग्य पाठ में मुख्य अतिथि के पी सक्सेना थे. अध्यक्षता द्वारिका प्रसाद अग्रवाल, विशिष्ठ अतिथि राजशेखर चौबे थे. इनके अलावा रणविजय राव, रमाकांत ताम्रकार, बलदेव त्रिपाठी, केशव शुक्ला, डॉ जी डी पटेल, भरत चंदानी, सुरेंद्र रावल, महेश श्रीवास, रामविलाश शर्मा, रमेश सैनी, प्रियंका सैनी आदि शामिल हुए. संचालन राजेंद्र मौर्य तथा आभार रमेश चौरसिया ने किया.