कोलकाता: प्रभा खेतान की पुण्यतिथि के दसवें वर्ष में उनके लेखन पर जुबान प्रकाशन और भारतीय सांस्कृतिक परिषद में एक अंतराष्ट्रीय वार्ता का आयोजन किया गया। परिचर्चा का मुख्य विषय प्रभा खेतान की आत्मकथा ‘अन्या से अनन्या तक’ और हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श रहा। प्रभा खेतान का लेखन स्वच्छंद, उन्मुक्त और पुरुषवादी लकीरों को चुनौती देता है। एक ऐसा समाज, जहाँ स्त्री का प्रेम करना ही अपराध माना जाता हो, वहाँ एक स्त्री किसी विवाहित मर्द से न केवल प्रेम कर बैठे बल्कि उसे खुले-आम अपनी आत्मकथा में स्वीकार करे, ऐसै साहस दिखाकर प्रभा खेतान ने साहस का प्रदर्शन किया। उद्यमशीलता और व्यापार का पहला गुण जोखिम उठाना बताया गया है। प्रभा खेतान न केवल एक साहित्यकार थीं, बल्कि एक कुशल और सफल उद्यमी भी थीं। उन्हें ‘कोलकाता चैम्बर ओफ कॉमर्स की पहली महिला अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है। कार्यक्रम के प्रमुख वक्ताओं में उर्वशी बुटालिया, प्रभा खेतान की आत्मकथा का अंग्रेज़ी अनुवाद करने वाली इरा पाण्डेय, ट्यूरिन विश्वविद्यालय इटली से प्रो. अलेसेंद्रा कानसोलारो, पोलेंड के एडम मिकविक विश्वविद्यालय से प्रो. मोनिका ब्रोकविक रहे। कार्यक्रम का संचालन अपरा कुच्छल ने किया। अन्य वक्ताओं में बची करकारिया, मैना भगत और डॉ संजुक्ता दासगुप्ता थीं।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए अपरा ने कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में जहाँ जाति, लिंग, वर्ग के भेदभाव हावी हों, वैसे समाज में स्त्री विमर्श एक चुनौती हैं और प्रभा खेतान इस पर खरा उतरती हैं। प्रो. अले. ने हिंदी की दुनिया में देह विमर्श के पहलू को उठते हुए कहा कि यहाँ यह बहुत संकुचित है व कभी भी पुरुष समाज इस बात को स्वीकार नहीं करता कि स्त्री के शरीर पर उसका अधिकार है। ऐसे में या तो वह पत्नी होती है या वेश्या। स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध कभी भी बराबरी का सम्बन्ध नहीं रहा। ‘अन्या से अनन्या’ और प्रभा खेतान के निबंध ‘बाज़ार बीच और बाज़ार के ख़िलाफ़’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र और बुद्धिमान स्त्री को समाज स्वीकार नहीं कर पाता। ‘छिन्नमस्ता’ में भी उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी के दुःख दर्द दिखाई पड़ते हैं।हालाँकि कभी वह माँ नहीं बनीं लेकिन वह मातृत्व की पीड़ा को समझती हैं व इस बात को भी रेखांकित करती हैं कि पुरुष और स्त्री के बीच सम्बन्ध की दरार अहम है। प्रभा जी की पृष्ठभूमि दर्शनशास्त्र की रही। उन पर सार्त्र और सिमोन द बोउआ का काफ़ी प्रभाव रहा। सिमोन और प्रभा जी का स्त्री दर्शन पश्चिम और पूर्व का दर्शन है। प्रो. मोनिका ने चित्रों के माध्यम से उनके उपन्यासों के विषय में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि गर्भपात जैसे विषय आज भी भारतीय समाज में बहुत संकीर्ण दायरों में बँधे हुए हैं। प्रभा जी के साहित्य में सम्पूर्ण भारत की तस्वीर दिखता है और नारी का वो रूप भी दिखता है जिसपर साहित्य और समाज दोनों जगह पर कम बात होती है। । वह एक सशक्त स्त्री आवाज़ के रूप उभरती हैं।
इरा पांडेय ने अन्या से अनन्या तक के अंग्रेज़ी अनुवाद के तमाम अनुभवों को व्यक्त करते हुए विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस अनुवाद को एक यात्रा अनुभव जैसा बताया जिसमें एक स्त्री के दुःख दर्द तनाव और प्रेम था। यह जानते हुए भी कि डॉ सर्राफ़ विवाहित हैं, और उनका व्यवहार प्रभा खेतान के परती अच्छा नहीं है, फिर भी वह उनसे बेइंतहा प्यार करती थींवह एक असाधारण और मज़बूत औरत थीं । डॉक्टर सर्राफ़ के साथ सम्बन्धों पर न उन्हें खेद रहा न उन्होंने कोई सफ़ाई दी। उनका साहित्य हमें स्त्री विमर्श की वास्तविक समझ प्रदान करता है। अनुवाद के समय के कई रोचक क़िस्से भी उन्होंने सुनाए। जैसे टनटन छन-छन शब्दों के लिए अंग्रेज़ी में कोई शब्द नहीं है। अंग्रेजी इस मामले में बहुत गरीब भाषा है जबकि क्षेत्रीय भाषाओँ में अनुवाद ज्यादा आसान है. परिचर्चा इस निष्कर्ष को पहुंची कि प्रभा खेतान का साहित्य स्त्री विमर्श को एक नया मोड़ देता है, एक ऐसी स्त्री जो निडर है, निर्भीक है, अपनी पसंद नापसंद को खुलकर अभिव्यक्त करती है, एक स्त्री जो प्रभा खेतान है…
(प्रभांसु ओझा की रिपोर्ट)