प्रयागराज: संस्कार भारती की सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियां देशभर में कहीं न कहीं होती ही रहती हैं. इसी क्रम में स्थानीय हिन्दुस्तानी एकेडेमी सभागार में विष्णु श्रीधर वाकणकर जन्म शताब्दी समारोह का भव्य आयोजन हुआ. इस कार्यक्रम के समापन पर एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन भी हुआ, जिसमें शामिल कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश और दुनिया में प्रेम, सद्भाव और शांति का संदेश दिया. इस कार्यक्रम की खास बात यह थी कि इसकी शुरुआत मुख्य अतिथि पूर्व राज्यपाल पं. केशरी नाथ त्रिपाठी की रचना से हुई. उन्होंने अपने चर्चित गीत, 'है सरगम का संगीत यहां, है नफरत और प्रीत यहां, मातम का ढोल यहां बजता, यह प्रेम पिपासु बंसुरिया है, इसकी परिभाषा क्या कहना…' को सुनाकर खूब वाहवाही लूटी.
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे कवि व पत्रकार सुधांशु उपाध्याय ने देश व समाज में फैली सामाजिक विसंगतियों को रेखांकित करती रचना सुनाई. एटा के डॉ धुवेन्द्र भदौरिया ने सुनाया, 'जीवन है प्रेम गीत गुनगुनाकर गाइये, दर्द भरा कोई उपहार मत दीजिए'. योगेन्द्र मिश्र ने ओज रचना प्रस्तुत की, जिसके बोल थे, 'अमर दीप की तरह जलो तुम, मत बुझना तूफानों में.' शैलेन्द्र मधुर ने सुनाया,‘प्रेम हो या गांव बचाए रखना, देश खुशहाल रहे काम यही करना है'. अंजना सेंगर ने 'वतन से प्यार करने का मेरा जज्बा निराला है, मैं अपने दिल की धड़कन में तिरंगा ले के चलती हूं.' सुनाया, तो जमुना प्रसाद उपाध्याय ने तीखे व्यंग्य में बुनी गजलें सुनाईं, जैसे 'हजारों योजनाओं के यहां बादल उमड़ते हैं, सबब क्या है कि इन फसलों का पीलापन नहीं जाता.' इस कार्यक्रम में रंजना त्रिपाठी, नीरा त्रिपाठी, अंजू गुप्ता आदि ने भी गीत प्रस्तुत किए. इस मौके पर विधायक हर्ष बाजपेयी, कल्पना सहाय, हरिमोहन मालवीय, स्वतंत्र शर्मा, डॉ अभिनव गुप्ता, रवीन्द्र कुशवाहा, अरिंदम घोष मौजूद रहे. कवि सम्मेलन का संयोजन डॉ प्रदीप भटनागर ने किया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में युवाओं और साहित्यप्रेमियों ने शिरकत की.