नई दिल्लीः इसमें कोई दो राय नहीं कि कुमार विश्वास ने हिंदी कविता को युवाओं के बीच एक नई लोकप्रियता दिलाई है. वह जहां जाते हैं लोग उनको सुनने को आतुर रहते हैं. विश्व पुस्तक मेले में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला. जब वह विश्व पुस्तक मेले में पहुंचे तो उनके साथ युवाओं का हुजूम था. हालांकि वह राजकमल प्रकाशन के स्टाल जलसाघर में अपनी किताब 'फिर मेरी याद' पर बातचीत के लिए खास तौर पर पधारे थे. कुमार विश्वास ने इस अवसर पर कहा कि किताब अपने आप में मुश्किल चीज है. पाठकों की ज़बरदस्त भीड़ के बीच उन्होंने अपनी कुछ कविताओं का पाठ भी किया. 'फिर मेरी याद' कविता संग्रह का प्रकाशन कुमार की पहली किताब के 12 साल बाद हुआ है. इस संग्रह में उन्होंने अपनी जीवन के कुछ पहलुओं, यात्राओं को कविताओं के माध्यम से साझा किया है. इस संग्रह में गीत, कविता, मुक्तक, कला और अशआर सबकी बहार है. प्रख्यात नामवर सिंह ने किताब के बारे में लिखा था, "कुमार विश्वास ने अपने नाम को और विश्वास शब्द को सार्थक किया है. नए लेखकों और कवियों के लिए उनके प्रयासों में भी उन्हें बड़ी कामयाबी मिली है."
मेले में राजकमल के स्टाल पर दूसरे भी कई कार्यक्रम हुए. अपनी आलोचना की किताब 'कठिन का अखाड़ेबाज़ और अन्य निबंध' पर बात करते हुए व्योमेश शुक्ल ने कहा, 'वाद-विवाद और आलोचना की संस्कृति को ये निजाम दबाना चाहता है.' राजकमल प्रकाशन के स्टाल से कविता संग्रह काजल न लगाना और कठिन का अखाड़ेबाज और अन्य निबंध का लोकार्पण किया गया. राजकमल प्रकाशन के जलसाघर में नई किताबों का पुस्तक मेला लगने के पहले दिन से ही लगातार जारी रहा और आखिरी दिन तक यह क्रम रुका नहीं. इस दौरान कई नए कविता संकलनों का लोकापर्ण जलसाघर के मंच से किया गया, जिसमें व्योमेश शुक्ल, प्रियदर्शन और अरुण देव की पुस्तकें भी शामिल हैं. मेले में प्रतिनिधि कहानियां चन्द्रकांता का लोकार्पण भी किया गया. अपनी किताब पर बातचीत करते हुए चंद्रकांता ने कहा, मैं एक कश्मीर विस्थापित हूं. कश्मीरियत हमें सामाजिक संस्कृति विरासत में मिली है. वो मेरे स्वभाव और लेखनी में भी ढल गई.