नई दिल्लीः विश्व पुस्तक मेले में साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित 50 नई पुस्तकों का एक साथ लोकार्पण किया गया. यह लोकार्पण प्रख्यात लेखक एवं केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा के उपाध्यक्ष कमल किशोर गोयनका द्वारा साहित्य अकादमी के हाल सं. 8-11 स्टॉल नं. 89-93 पर किया गया. इस अवसर पर बोलते हुए कमल किशोर गोयनका ने कहा कि साहित्य अकादमी की पुस्तकें साहित्य संसार का गौरव बढ़ाती हैं. वे न केवल अपने विषयों की विविधता में उत्कृष्ट होती हैं बल्कि बेहद सस्ती भी होती हैं. आगे उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी से मेरा संबंध लगभग 4 दशक पुराना है और इस बीच मैंने साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की श्रेष्ठता को निरंतर बढ़ते हुए देखा है. ये श्रेष्ठता तकनीक, विषय-वस्तु और उनकी निरंतर बढ़ती संख्या में भी नजर आती है. साहित्य अकादमी की पुस्तकों के सस्ते होने के कारण विद्यार्थी वर्ग उन्हें बड़ी संख्या में खरीद पाता है. किताबों के इस महाकुंभ में साहित्य अकादमी की पुस्तकें यहां आए पाठकों और खरीददारों के लिए नायाब तोहफा है.
साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कार्यक्रम के प्रारंभ में गोयनका का स्वागत पुस्तकें भेंट करके किया. आगे उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी की पुस्तक प्रकाशन नीति 24 भारतीय भाषाओं के साहित्य को अनुवाद के जरिए एक-दूसरे तक पहुंचाना है और इसके लिए वह पूरी निष्ठा से कार्य कर रही है. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि अभी तक साहित्य अकादमी विभिन्न भारतीय भाषाओं में 7 हजार से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित कर चुकी है. उन्होंने वहां उपस्थित सभी पाठकों को सूचित किया कि पुस्तक मेले में साहित्य अकादमी प्रतिदिन विभिन्न कार्यक्रम जैसे – आदिवासी लेखक सम्मिलन, पूर्वोत्तरी एवं बाल साहिती कार्यक्रमों के अतिरिक्त पठन-पाठन की संस्कृति पर एक परिचर्चा भी आयोजित करेगी. इसी दिन आयोजित 'नारी चेतना' कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग ने की और इसमें जे. भाग्यलक्ष्मी ने अपनी कविताएं, तरन्नुम रियाज़ ने उर्दू कहानी तथा सुकृता पॉल कुमार ने अंग्रेजी कविताएं प्रस्तुत कीं. अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग ने कहा कि चेतना मनुष्य होने का पर्याय है. पृथ्वी पर जीवन और संस्कृति के विकास में महिलाओं का योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण है. चेतना की कमी के चलते ही मनुष्य ने स्त्रियों को डरा धमकाकर उनके और अपने बीच असमानता की एक ऐसी रेखा खींच दी जिसको मिटाया जाना जरूरी है. इस समय नर या नारी चेतना की बजाय ऐसी चेतना की जरूरत है जो सभी के साथ समानता का व्यवहार करे.