गोरखपुरः दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संवाद भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष व दस्तावेज के संपादक प्रो विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को अकादमी के सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता से सम्मानित किया गया. यह सम्मान अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार, उपाध्यक्ष माधव कौशिक व सचिव के श्रीनिवासराव ने परामर्श मंडल के सदस्यों की उपस्थिति में प्रदान किया. स्वागत करते हुए सचिव के श्रीनिवासराव ने कहा कि यह अकादमी और मेरा सौभाग्य है कि आज प्रो तिवारी को महत्तर सदस्यता सम्मान देने का अवसर मिला. इनका व्यक्तित्व बहुआयामी है. महत्तर सदस्यता अर्पण एवं संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने कहा कि कविताएं व विचार मनुष्य की भावनाओं व अहसासों को खूबसूरत बनाते हैं. प्रो तिवारी की कविताएं समाज को नई दिशा देती हैं. यह अतिशयोक्ति नहीं कि वह अपने आप में एक संस्थान हैं. इनके साथ अकादमी में बिताए पल जीवन के लिए अनमोल हैं. इन्होंने कठिन परिस्थितियों में शालीनता एवं दृढ़ता से कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए. इनसे मुझे काफी कुछ सीखने को मिला.
अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि जब 2008 में प्रो तिवारी अकादमी के हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक बने, तो सदस्य के रूप में अकादमी से जुड़ा. पांच साल के कार्यकाल में जितना इनसे सीखा, उतना 45 वर्षों में नहीं सीख पाया. इनकी एक बात याद है, जो दूसरे की असहमति का सम्मान नहीं करता वह साहित्यकार नहीं होता. यही बातें इन्हें बड़ा साहित्यकार बनाती हैं. आज हम जिस अकादमी की स्वायतता के साथ खड़े हैं उसे बनाने का कार्य प्रो तिवारी ने किया. यह हमारे पथ प्रदर्शक हैं. इन्होंने सभी विधाओं पर लिखा. ये एक संपूर्ण साहित्यकार हैं. स्वीकृति भाषण में प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि यह सम्मान डा सर्वपल्ली राधाकृष्णनन और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी सहित देश के बड़े-बड़े व्यक्तित्वों को प्रदान किया गया. इसे प्राप्त कर खुद को सौभाग्यशाली मानने के साथ संकोच का भी अनुभव कर रहा हूं. इस अवसर पर रमेश रितुपर्ण, श्रीराम परिहार, प्रो अनिल राय, प्रो विमलेश मिश्र, प्रो. कमलेश पंत, प्रो सुरेंद्र दूबे, प्रो केसी लाल, प्रो जनार्दन, प्रो आरडी राय, डा अरुणेश नीरन, डा अजीत दूबे, प्रो शरद मिश्रा, प्रो. हर्ष सिन्हा, प्रो अनंत मिश्र आदि समेत तमाम साहित्यकार व साहित्यप्रेमी मौजूद थे.