पटना: बिहार के चर्चित कवि और मनोचिकित्सक विनय कुमार के नए काव्य संग्रह 'यक्षिणी' पर केंद्रित विमर्श 'बिहार म्यूजियम' में आयोजित किया गया। राजकमल समूह व बिहार म्यूजियम के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित विमर्श में बड़ी संख्या में पटना के लेखक, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता आदि उपस्थित थे। बिहार संग्रहालय में संरक्षित दीदारगंज की यक्षी पर केंद्रित डेढ़ सौ पृष्ठों की कविता-शृंखला यक्षिणी, इसी साल राजकमल प्रकाशन से आयी है। रचनाकार डॉ विनय कुमार ने बताया कि यक्षिणी मौर्यक़ालीन मूर्ति के बहाने कला, इतिहास, मिथक और संस्कृति के साथ-साथ, सौंदर्य और प्रेम की भी यात्रा है। यह यात्रा से अधिक एक खोज है, मगर अतीत की नहीं। यह अतीत के बहाने समय के सवालों के उत्तर ढूँढने की सांस्कृतिक पहल है। साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि अरुण कमल ने कहा " डॉ विनय कुमार भाषा के जादूगर हैं। खड़ी बोली के जितने रंग और वर्ण हो सकते हैं, उन सब का स्वर उनकी कविताओं में तत्सम, लोक और विभिन्न तरह के छंदों में अभिव्यक्त हुआ है। उन्होंने यक्षिणी कविता की चर्चा करते हुए कहा कि इतनी लंबी कविता को लिखना आसान न था। एक प्रस्तर प्रतिमा कवि को उद्वेलित करती है और वह कई स्तरों की यात्रा करते हुए उसे आधुनिकता बोध के साथ कविता के प्लेटफार्म पर संभव कर दिखलाता है।"
कवि आलोक धन्वा ने कहा " यक्षिणी को कविता में उठाना दुष्कर कार्य था। इस कविता में क्लासिकल लालित्य को बचाने में कवि पूरी तरह से सफल हुआ है। बगैर इसके प्रवाह में गये इसे अचीव भी नहीं किया जा सकता था। "
कवि आशुतोष दुबे ने कहा " डॉ.विनय कुमार की कविता पुस्तक 'यक्षिणी' अपने वितान और विस्तार में एक प्रतिमा के बहाने एक ऐसे काव्यसंसार में ले जाती है जहाँ कवि मिथक, इतिहास, कल्पना की रोमांचक यात्रा में पाठक को भी सहभागी बना लेता है। यह हिन्दी की कुछ कालजयी कविताओं की परम्परा में है । कवि ने समकालीन प्रश्नों को इतिहास और मिथक के भीतर से देखा है । उनकी कल्पना प्रवणता, संवाद और प्रश्नाकुलता ने इसे बहुत चर्चित और स्वीकृत स्थान दिलवाया है।"
*आशीष मिश्र के मुताबिक " यक्षिणी सामूहिक स्मृति नहीं, सामूहिक कामना की अभिव्यक्ति है। यह विखंडित दुनिया के बरक्स, संबद्ध और समग्र संसार का स्वप्न है। यक्षिणी उसी स्वप्न का एक नाम है। यह उसके आह्वान, बखान और अवसान की कविता है। अलकापुरी भले कुबेर की हो, लेकिन रामगिरि महाकवि कालिदास का है। उसी तरह इस संग्रह के बाद यक्षिणी कवि विनय कुमार की होगी।"
संचालन कवयित्री भावना शेखर ने किया। उस मौके मौजूद लोगों में थे रामबचन राय, तरुण कुमार, विनोद अनुपम, रत्नेश्वर, शिवदयाल, अनिल शर्मा, जयप्रकाश, सन्यासी रेड, शैलेन्द्र राकेश, मनोज कुमार बच्चन, वीरेंद्र कुमार, संजय कुमार कुंदन, अरुण सिंह, श्रीधर करुणानिधि, विद्याभूषण, अरुण नारायण, अवधेश प्रीति, संतोष दीक्षित, रमेश रितम्भर , प्रत्युष मिश्रा और नरेंद्र कुमार ।