नई दिल्लीः स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में आयोजित दैनिक जागरण अखिल भारतीय हिंदी निबंध प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा के साथ ही इसके विजेताओं ने अपनी भाषा के विकास को लेकर जो कुछ कहा है, उस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है. हर विजेता ने अपनी समझ के अनुसार हिंदी के विकास को लेकर जो स्वप्न देखा है, उस पर खुलकर अपनी बात रखी है. विश्वविद्यालय श्रेणी में एक लाख रुपए का प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाले आदित्यनाथ तिवारी हिंदी के उत्थान को लेकर काफी दूरदर्शी हैं. उनका मानना है कि मातृभाषा हिंदी को अधिक मजबूत बनाने के लिए उसे हर उस क्षेत्र में पैठ बनानी होगी, जहां वह नहीं है या कम है. उनका कहना है कि इस कार्य में दैनिक जागरण एक अमूल्य किरदार निभा सकता है. उन्होंने सुझाव दिया कि विधि और विज्ञान के क्षेत्र में समय-समय पर होने वाले अनुसंधान व शोध की जानकारी हिंदी भाषा में देकर दैनिक जागरण उन पाठकों के लिए लाभप्रद साबित होगा जिन्हें इनकी आवश्यकता है.
दिल्ली के आदर्श नगर में रह रहे आदित्यनाथ मूल रूप से उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला के निवासी हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से वह शोध कर रहे हैं. लेखन व वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने में उनकी शुरुआत से ही रुचि रही है. उनके अनुसार दैनिक जागरण की ओर से समय-समय पर इस तरह की प्रतियोगिताओं के आयोजन से हिंदी के प्रसार में मदद मिलती है. छात्रों का भी मनोबल बढ़ता है. आदित्यनाथ तिवारी ने जागरण संवाददाता को बताया कि इंटरनेट के माध्यम से आज लोग अपनी बातों, विचारों को हिंदी में अभिव्यक्त कर पा रहे हैं. सही मायने में यहां हिंदी को बेहतर मंच प्राप्त हुआ है. लोग हिंदी में ही अपनी बात रखना चाहते हैं और उन्हें अब यह मौका मिलने लगा है. उन्होंने बताया वह बचपन से दैनिक जागरण के पाठक रहे हैं और इसने हिंदी भाषा के प्रचार को मजबूती दी है. हिंदी भाषा के उत्थान और विभिन्न कार्यक्षेत्रों में इसकी उपयोगिता की ओर दिलाया ध्यान दिलाते हुए वह कहते हैं कि हिंदी भाषी समुदाय अपनी सारी समस्याएं अंग्रेजी में लड़ता है. इसलिए विधि कानून के क्षेत्र में हिंदी व अन्य भाषाओं को शामिल किया जाना चाहिए. इस से हिंदी माध्यम से इस क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों को भी लाभ मिलेगा. इसी प्रकार विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी भाषी विद्यार्थियों के लिए विकल्प होना चाहिए. जिससे भाषा की बाध्यता प्रतिभा पर भारी न पड़े.