जयपुर: साहित्य के बाजारीकरण के विरुद्ध प्रगतिशील  लेखक संघ  की राजस्थान ईकाई ने समानांतर साहित्य महोत्सव  आयोजित किया साहित्य महोत्सव में देश भर से साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र जुड़े साहित्यकार, रंगकर्मीसंस्कृतिकर्मी इकट्ठा हुए। स्वागत वक्तव्य चर्चित कवि ऋतुराज ने दिया।

'राहुल  सांस्कृतिक मंच ' पर आयोजित  उद्घाटन समारोह में बोलते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन ने अपने संबोधन में कहा " यहां  जुटे लेखक परिवर्तन का आगाज़ करेंगे। जो ढुलमुल लेखक हैं उन्हें शक्ति प्रदान करेगा यह आयोजन। प्रगतिशीलता सिर्फ ओढ़ लेने से नहीं आती, बल्कि उसे रोज़  ब रोज़  जीना पड़ता है।  साहित्यकार यदि राजनीति व  विचाराधारा से अलग होंगे तो जीवन से कट जाएंगे।

अमेरिका से आये परीक्षित सिंह ने  सभा को संबोधित करते हुए कहा " हमें उदार वाम  की परंपरा को आगे बढ़ाना होगा। अमेरिका में इतनी उदारता  बची हुई  है उस देश का  राष्ट्रीय झंडा भी  जलाया जा सकता है।"

नूर ज़हीर ने अपने  विचारों के महत्व पर बल देते हुए संबोधन में कहा " जब विचार बदलता है तो संसार बदलता है। "  जस्टिस दवे  ने  जवाहर  लाल नेहरू, लेनिन  की  चर्चा करते हुए कहा " मैंने रिट लिखे, फैसले लिखे लेकिन कभी साहित्य नहीं लिखा । लेकिन  अमृता प्रीतम  जी इस बात को कि ' कलम  किसी सरकार की खुशामद में लिखे तो जाली सिक्का बन जाता है।' को में हमेशा अपने पास रखता हूं।

 उद्घाटन सत्र में  ईश मधु तलवार के उपन्यास 'उनाला खुर्द ' का लोकार्पण भी  किया गया। समानांतर साहित्य महोत्सव में एक साथ  कई सत्र आयोजित हैं। ' कन्हैया लाल पेठिया मंच ' पर कहानीकार वंदना राग के साथ चरण सिंह पथिक ने बातचीत की। चरण सिंह पथिक ने इस सवाल की क्या लेखक को एक्टीविस्ट होना चाहिए? वंदना राग ने कहालेखक अपनी रचना  को लोगों तक  पहुंचाने के लिए अगर काम करता है तो उसको एक्टीविस्ट होना  होगा। मैं अभी भी लिखना सीख रही हूं। जैसे महान कथाकार मोपांसा एक  भंगिमा पर भी कहानी लिख सकते थे लेकिन हमें  वो ऊंचाई  हमें हासिल करना है।"  

 चरण सिंह  के इस सवाल की कहानी विचारों का ऐसा गहरा कोहरा छाया रहता है कि कहानी दब जाती है, वंदना राग की टिप्पणी थी " कहानी में विचार तो रहेगा लेकिन विचार को पात्रों के माध्यम से  सामने आना चाहिए।"  रांगेय राघव मंच पर खेलों पर बातचीत हुई। मुख्य वक्ता थे भारत के लिए का राष्ट्रीय -अंतराष्ट्रीय पदक जीतने वाले चर्चित खिलाड़ी गोपाल जी और लिम्बा राम  । इस बातचीत के सूत्रधार थे सुधांशु माथुर। गोपाल जी ने कहा " खेल को लेकर मुझे शादी के दूसरे दिन  जर्मनी जाना पड़ा। मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा।

लिम्बा राम ने बताया " मुझे न्यूरोलॉजी की बीमारी हो गई जिससे में न बोल पाता था न ठीक से लिख पढ़ पाता था। मुझे मदद काफी कम की गई लेकिन प्रचार किया गया। मैं ट्राइबल लोगों के लिए एक केंद्र खोलना चाहता हूँ ताकि मेरी तरह के और खिलाड़ी उभर कर आ सके।