मुंबई: मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सहयोग से साहित्यिक संस्‍था वाग्‍धाराने विद्यापीठ के सांताक्रुज स्थित कालीना कैंपस में दो दिवसीय भव्‍य व्‍यंग्‍य महोत्‍सव तथा वाग्धारा नवरत्न सम्मान समारोह आयोजित किया. इसमें विभिन्‍न क्षेत्रों की जानी-मानी हस्तियों व्‍यंग्‍यकार डॉ. सूर्यबाला, कथाकार-कार्टूनिस्‍ट आबिद सुरती, रंगकर्मी पद्मश्री निरंजन गोस्‍वामी, वरिष्ठ पत्रकार विश्‍वनाथ सचदेव, फिल्मकार अविनाश दास, विख्यात महिला तबला वादक पंडिता अनुराधा पाल, इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति टीवी कट्टीमनी, कवि रवि यादव और पत्रकार राजीव खांडेकर वाग्‍धारा नवरत्‍न सम्‍मान' से नवाजे गए.

मुंबई व्यंग्य महोत्सव का उद्घाटन वेंकप्पा कट्टीमनी ने किया. प्रथम सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए डॉ. सूर्यबाला ने कहा कि व्‍यंग्‍य के मूल में एक विचार होता है. लिखने, पढ़ने और छापने वालों सबको जल्‍दबाजी है. आज व्‍यंग्‍य की लोकप्रियता ही उसकी शत्रु बन रही है. दुर्भाग्‍य यह है कि समकालीनों को सराहने का संस्‍कार कम होता जा रहा है. डॉ. करुणा शंकर उपाध्‍याय का कहना था कि व्‍यंग्‍य सुनने-लिखने में आसान है, लेकिन लिखना कठिन है. लखनऊ से आए युवा व्‍यंग्‍यकार पंकज प्रसून ने 'व्‍यंग्‍य के टुकड़े', दिल्‍ली के कमलेश पांडे ने खेती का विकास बनाम विकास की खेतीडॉ. हरि जोशी ने आराम बड़ी चीज़ हैपढ़ा.

द्वितीय सत्र में कथाकार-कार्टूनिस्‍ट आबिद सुरती ने धर्मयुगके अनुभव बांटा। नवनीतके संपादक विश्‍वनाथ सचदेव ने कहा कि परिजन जब सम्‍मानित करते हैं तो अधिक अच्‍छा लगता है. इंदिरा गांधी जनजाति विवि अमरकंटक के कन्‍नड़ भाषी लेखक टीवी कट्टीमनी ने बताया कि समाजसेवा ने मुझे उपकुलपति बना दिया. माइम कलाकार पद्मश्री निरंजन गोस्‍वामी ने कहा कि मूक अभिनय विधा समाप्‍त होती जा रही है, इस पर ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है. अनुराधा पाल और कवि, अभिनेता ने भी अपने विचार व्यक्त किए. लेखक-निर्देशक अविनाश दास ने अपनी फिल्‍म अनारकली ऑफ आरापर विचार रखे. इस मौके पर डॉ. वागीश सारस्‍वत के काव्‍य संग्रह छप्‍पर में उड़से मोरपंखका लोकार्पण और शिल्पायन प्रकाशन के कपिल भारद्वाज का भी सम्‍मान किया गया.

दूसरे दिन तीसरे सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए वरिष्‍ठ व्‍यंग्‍यकार डॉ. हरि जोशी ने हमारे समय का व्‍यंग्‍यविषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि व्‍यंग्‍य की नयी पीढ़ी बहुत सतर्क है और अच्‍छा लिख रही है, जिनसे अपार संभावनाएं हैं. कमलेश पांडे ने कहा कि अच्‍छा व्‍यंग्‍य अपने समय का विशिष्‍ट और प्रामाणिक दस्‍तावेज़ होता है. प्रभाशंकर उपाध्‍याय की राय थी कि अंग्रेजों के समय वरिष्‍ठ व्‍यंग्‍यकारों ने छद्म नामों से लिखा. आज स्‍वतंत्र हैं इसलिए स्‍वतंत्रता से लिखा जा रहा है. सुभाष काबरा ने रचनाकारों से  आत्‍ममंथन का अनुरोध किया. पंकज प्रसून की राय थी कि टिप्‍पणीकारों को व्‍यंग्‍यकार मान लिया गया और वे आत्‍ममुग्‍ध हो गए. संजीव निगम ने कहा कि हम नये लेखकों को प्रोत्‍साहित नहीं हतोत्‍साहित करते हैं. डॉ. अनंत श्रीमाली का मत था कि अब वह  स्थिति आ गई है कि कितना भी तीखा लिखो, व्‍यवस्‍था की चमड़ी बहुत मोटी हो गई है, संवेदना खत्‍म होती जा रही है. उस पर कोई असर नहीं होता.