नई दिल्ली: साहित्य अकादमी द्वारा 'अलिखित भाषाओं में मौखिक महाकाव्य' विषय पर आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे और अंतिम दिन का पहला सत्र 'पश्चिमी और पूर्वी भारत के महाकाव्य' विषय पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता पांडुरंग आर फालदेसाई ने की. उपेंद्र अणु ने अपने आलेख में दक्षिण राजस्थान के बांगड़ क्षेत्र में प्रचलित अलिखित महाकाव्य गलालेंग के बारे में विस्तार से बताया. नीला शाह ने गुजरात के विभिन्न आदिवासी इलाकों में प्रचलित जीवंत रामायणों के बारे में अपना आलेख प्रस्तुत किया. महेंद्र कुमार मिश्र ने जातीय पहचान के रूप में मौखिक महाकाव्य विषय पर अपना शोध पूर्ण आलेख प्रस्तुत किया. सत्र के अध्यक्ष पांडुरंग आर फालदेसाई ने गोवा क्षेत्र में प्रचलित लोक साहित्य में रामायण और महाभारत की उपस्थिति का सारगर्भित विवरण प्रस्तुत किया.
संगोष्ठी का अंतिम सत्र दक्षिण भारत के अलिखित महाकाव्यों पर था. सत्र की अध्यक्षता के मुथुलक्ष्मी ने की. सर्वप्रथम वीरेश वाडिगर ने कन्नड लोक महाकाव्यों में स्त्री पहचान के मुद्दे पर अपनी बात रखी तो डी ज्ञानसुंदरम ने तमिऴ भाषा के विभिन्न महाकाव्यों के बारे में विशद आलेख प्रस्तुत किया. एस नागमल्लेश्वर राव ने तेलुगु की मौखिक काव्य परंपरा के बारे में अपने तथ्य रखे. सत्र की अध्यक्षता के मुथुलक्ष्मी ने मलयाळम भाषा में मौखिक महाकाव्यों की परंपरा पर विस्तृत प्रकाश डाला. अंत में अकादमी के उपसचिव एन सुरेशबाबु ने सबके प्रति अपना आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया. ज्ञात हो कि इस द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में पूरे देश से आए हुए बीस विद्वानों ने भाग लिया.