नई दिल्लीः 'साहित्य एवं स्त्री सशक्तीकरण' विषय पर परिसंवाद साहित्योत्सव 2022 के दौरान एक महत्त्वपूर्ण आयोजन रहा. इस परिसंवाद का उद्घाटन वक्तव्य प्रख्यात अंग्रेज़ी लेखिका ममंग दई ने दिया. उन्होंने कहा कि महिलाएं हमेशा परिवर्तन की अनुगामी रही हैं और दुनिया में जो भय फैला है, उससे लड़ने के लिए उनकी सजगता हमेशा एक हथियार रही है. उन्होंने कई उदाहरण देकर स्पष्ट किया कि स्त्री की संवेदना दुनिया को नए तरीके से समझती और संवारती है. बीज वक्तव्य देते हुए प्रख्यात बाङ्ला लेखिका एवं कवयित्री अनीता अग्निहोत्री ने कहा कि केवल बाङ्ला ही नहीं अन्य भाषाओं में भी लेखिकाओं की एक पूरी पीढ़ी ने अपने समय की सच्चाई को लिखा और अन्य लोगों को भी लेखन के लिए प्रोत्साहित किया. इस सृजनात्मक लेखन से महिलाओं की मानसिक सोच को बदलकर आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों को भी बड़ी सफलता मिली है.
साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने दोनों अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम् एवं पुस्तकें भेंट करके किया. उन्होंने कहा कि सामाजिक विकास की नींव महिलाओं द्वारा ही रखी गई और कला एवं संस्कृति के मूल प्रतीक उन्हीं के द्वारा गढ़े गए हैं. सामाजिक बदलाव की हर सीढ़ी पर उनके पदचिन्ह अंकित हैं. आजादी के 75वें वर्ष में उनकी इन्हीं उपलब्धियों को रेखांकित करने के लिए यह संगोष्ठी आयोजित की गई है. अगले सत्र में ममता कालिया की अध्यक्षता में विभिन्न भारतीय भाषाओं के सात रचनाकारों ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. इसी दौरान 'भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर साहित्य का प्रभाव' विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन भी हुआ. आज हुए तीन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः उदय नारायण सिंह, संयुक्ता दास गुप्ता एवं अनिल कुमार बर ने की. इन सत्रों के विषय थे 'भारतीय कविता और स्वतंत्रता आंदोलन', 'स्त्री लेखक और स्वतंत्रता आंदोलन' एवं 'हाशिये के स्वर और स्वतंत्रता आंदोलन.'