नई दिल्लीः उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद पर हिंदी की कभी बेहद सम्मानित और अब गुमनामी सी झेल रही पत्रिका के एक संपादक ने बेहद निम्नस्तरीय टिप्पणी कर दी, जिस पर हिंदी जगत में काफी बवाल मचा हुआ है. जाहिर है बात जब मुंशी प्रेमचंद की होगी तो बहस भी काफी लंबी खिंचेगी. हिंदी के तमाम प्रतिष्ठित लेखक और आलोचक इसे संपादक की विपन्न बुद्धि और प्रसिद्धि पाने की ललक से जोड़ कर देख रहे हैं. पर एक मजेदार टिप्पणी हिंदी के लेखक डॉ ओम निश्चल ने अपने सोशल मीडिया पेज पर की है. उन्होंने इस विवाद पर यह कविता लिखी है.

 

लाभ हानि के गणित में हुए प्रेमचंद फेल

कौन लगाए आजकल उनको आखिर तेल.
जब तक रहता पाठ्यक्रम में, रहता है याद
हिंदी का लेखक! भला क्या उसकी औकात.
अक्षर अक्षर बीन कर वह लिखता अध्याय
एक अंगोछा भी मगर मिल पाए, सौभाग्य.
मठाधीश सब रच रहे राजनीति के खेल
किसका खूंटा खोल लें किसे भेज दें जेल.
कोप भवन मैं बैठ कर लिखता वह निर्द्वंद्व
जिसकी हिम्मत हो करे उससे आकर द्वंद्व.
रचते हो रचते रहो होकर भले विशिष्ट*
देखो कवि क्या कह गया 'छंद हुए फासिस्ट'.
सुर्ती का पाउच जहां पहुंचा गांव-गिरांव
कवि को कोई जानता नहीं उसी के गांव.
जिसने कहा समाज में लेखक बने मशाल
वह बेचारा ही बना अब जी का जंजाल.
धंधा चमकाने लगे प्रेमचंद के नाम
अब तक चाहे अदब में खुद ही हों गुमनाम.