कुंवर बेचैन के शिष्य चेतन आनंद कविता के क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय हैं. कविता की कई किताबें आ चुकी हैं और काव्य कुमार, काव्य गौरव, प्रतिष्ठा पुरस्कार, साहित्यश्री, हिंदी साहित्य साधना और हिंदी साहित्य सेवा पुरस्कार जैसे दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं. देश भर में कविता पाठ, कवि सम्मेलनों व मुशायरों में शिरकत व रेडियो व टेलीविजन पर से अनेक बार काव्य पाठ कर चुके हैं. कोरोना लॉक डाउन के दौर में उन्होंने कई इंद्रधनुषी दोहे लिखे. जिनमें से कुछेक यहां भीः

नींद नहीं है नींद-सी, ख़्वाब न लगते ख़्वाब।

लहराया मस्तिष्क में, चिंता का सैलाब।।

 

वह आये एकांत में, खुशबू बनकर पास।

नींदों में हैं ख़्वाब के, सतरंगी अहसास।।

 

नींदों के घर आ गए, सपनों के मेहमान।

कुछ लगते हैं शाप-से, कुछ लगते वरदान।।

 

जाने किस अहसास ने, छुए प्रेम से अंग।

नींदों में फिर भर गए, इंद्रधनुष के रंग।।

 

मुझ पर उसके प्यार का, ऐसा चढ़ा सुरूर।

है नींदों की माँग में, सपनों का सिंदूर।।

 

ऐसा घेरा नींद ने, जब आये वह याद।

सुध-बुध भूले, गुम हुए, बरबस ही अवसाद।।

 

सब हल होंगीं मुश्किलें, मन में रख विश्वास।

हम ही इक दिन देखना, बदलेंगे इतिहास।।

 

अनगिन शूल-चुनौतियाँ, बन जाएंगीं फूल।

कर्तव्यों की राह पर, बाधाओं को भूल।।

 

दर्द मिला तो दर्द का, दूर हुआ एकांत।

दोनों ने मिल बात की, देह हुई फिर शांत।।

 

माना हैं कठिनाइयाँ, विपदा है चहुँओर।

मगर कभी टूटे नहीं, उम्मीदों की डोर।।

 

थक जाती है देह जब, करके तुमको याद।

आँखों में यह नींद तब, रखती है बुनियाद।।

 

चंचलता मन से निकल, होने दे गम्भीर।

क्यों ऐसे रह-रह करे, मन को अधिक अधीर।।

 

लम्बे अरसे बाद फिर, जागी है उम्मीद।

खुशियों के अब शीघ्र ही, हो जाएंगे दीद।।

 

लाइलाज है प्यार यह, कोरोना-सम जान।

पल-पल बदले रूप निज, मुश्किल है पहचान।।

 

दिल को दिल के घर रखो, कुछ मत करो विचार।

कोरोना-सा हर तरफ, बाहर घूमे प्यार।।

 

मास्क पहन, लेकर निकल, नई सुरक्षित सोच।

चूक हुई तो वायरस, लेगा तुझे दबोच।।

 

घर से निकला है नया, डर लेकर इंसान।

शाप न बन जाये कहीं, जीने का वरदान।।

 

उसकी आँखों में बसा, मुझसे ज़्यादा प्यार।

इसीलिये लगता उसे, दे दूँ सब अधिकार।।

 

बोझिल मन, छाले भरे, थके-थके से पाँव।

दो नयना उम्मीद से, ढूँढें अपना गाँव।।

 

ज़िंदा हैं, काफी नहीं, मत पूछो अब हाल।

अपने घर लौटे श्रमिक, मन में लिये मलाल।।