नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने 'ललित निबंध: स्वरूप एवं परंपरा' विषय पर एक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया है. उद्घाटन वक्तव्य देते हुए लेखक श्यामसुंदर दुबे ने ललित निबंध के सामने खड़ी चुनौतियों पर बात की और कहा कि हिंदी साहित्य की किसी भी विधा ने इतनी बाधाओं का सामना नहीं किया होगा. उन्होंने ललित निबंध की लोकप्रियता के संदर्भ में सामर्थ्यशाली पाठकों की चर्चा की और कहा कि इतने प्रश्नों, संदेहों के बावजूद भी अगर ललित निबंध का विकास हो रहा है तो यह उसकी जीवटता और सामर्थ्यवान होने का ही सबूत है. आरंभ में स्वागत भाषण में साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने ललित निबंध की विशेषताओं को बताते हुए कहा कि ललित निबंध के लिए शब्दों और भावों का उचित संयोजन ज़रूरी है. इसके लिए ख़ास तरह की एकाग्रता और निपुणता की आवश्यकता होती है.

इस कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए समालोचक चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि ललित निबंध आत्मा की अभिव्यक्ति है. श्रीराम परिहार ने बीज वक्तव्य में ललित निबंध की विस्तृत परिभाषा देते हुए कहा कि शास्त्र और सृजन के बीच विकसित विधा ही ललित निबंध है. संगोष्ठी का प्रथम सत्र 'निबंध के परिसर में ललित निबंध का रहवास' विषय पर केंद्रित था जिसकी अध्यक्षता अनंत मिश्र ने की और कृष्ण कुमार सिंह एवं कलाधर आर्य ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. द्वितीय सत्र 'ललित निबंध का सांस्कृतिक परिसर' पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता चित्तरंजन मिश्र ने की और इंदुशेखर तत्पुरुष एवं श्रीराम परिहार ने आलेख-पाठ किया. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया.