नई दिल्लीः लघुकथा के पुरजोर समर्थक रचनाकार और दिशा प्रकाशन के निदेशक मधुदीप गुप्ता का  दिल्ली के एक चिकित्सालय में निधन होने का समाचार मिलते ही देश भर में लघुकथा से जुड़े रचनाकारों और साहित्यकारों में शोक की लहर फैल गई. 1 मई 1950 को हरियाणा के दुजाना में पैदा हुए गुप्ता ने जीवन भर अपने प्रकाशन और निजी स्तर पर लघुकथा विधा को एक प्रतिष्ठित मुकाम दिलवाने की कोशिश की. उपन्यास 'एक यात्रा अन्तहीन', 'उजाले की ओर', 'और भोर भई', 'पराभव', 'लौटने तक', 'कल की बात', 'It Was Yesterday'; बाल उपन्यास 'ऐसे बनो बहादुर'; कहानी-संग्रह और लघुकथा 'छोटा होता आदमी', 'मेरी बात तेरी बात', 'समय का पहिया…','हिस्से का दूध' और 'तनी हुई मुट्ठियाँ', 'पड़ाव और पड़ताल' जैसे संपादित लघुकथा-संग्रह'; ;तीसरा महायुद्ध', 'आसार', 'एक कदम और जैसे संपादित कहानी-संग्रहों से उन्होंने साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई.

अपने द्वारा संपादित और संयोजित 25 खंडों की लघुकथा शृंखला 'पड़ाव और पड़ताल' के चलते वे हिंदी साहित्य जगत में खासे चर्चित रहे, यही वजह थी कि उनके निधन पर हर आयु वर्ग के साहित्यकार ने अपनी संवेदना जताई. वरिष्ठ कथाकार चित्रा मुद्गल की टिप्पणी थी, “लघु कथा के उत्कर्ष को जीने और देखने के आकांक्षी मधु जी को खोकर हमने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया है जिसकी क्षति को पूरा करना संभव नहीं.अनुवादक, साहित्यकार सुभाष नीरव ने लिखा, “लघुकथा के कर्मठ योद्धा भाई मधुदीप जी को… आपके काम को कभी नहीं भुला पाएंगे हम. लघुकथा के लिए किए आपके काम को आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी.प्रमोद कुमार ने लिखा, “आप लघुकथा के पर्याय रहे और अपनी अनन्त यात्रा पर प्रस्थान भी आपने इसी अंदाज में करना पसंद किया. अन्तिम क्षण तक लघुकथा और लघुकथा के रचनाकारों का चिन्तन, स्थिति-परिस्थिति स्वास्थ्य से संघर्ष, आपका हौसला देना और अपना हौसला बनाए रखना हमेशा प्रेरक रहेगा. उन्हें याद कर सोशल मीडिया पर दुख जताने वालों में वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय, शरद आलोक, संजय पुरोहित, आशा पाण्डेय, अरुण नैथानी, जसवीर धीमान, शशि बंसल गोयल, डॉ. गोपाल निर्दोष, महिमा 'श्रीवास्तव' वर्मा, विभा रानी श्रीवास्तव आदि भी शामिल थे.