लखनऊः साहित्यिक संस्था तुलसी-मीर फाउंडेशन शाहजहांपुर और उत्तर रेलवे की ओर से चारबाग रेलवे स्टेशन के परिसर में लगे गांधी पुस्तक मेले में कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन हुआ. कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि हितेंद्र शर्मा पथिक ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन कर किया. इसके बाद युवा गीतकार पीयूष शर्मा ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. वाराणसी से आए युवा कवि नीलेंद्र नील ने वैसे तो बाहर सारे मिल जाते हैं, पीयूष शर्मा के सोचता हूं तुम्हें एक उपहार दूं, पुण्य तुम पर प्रणय के सभी वार दूं से श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए. शाहजहांपुर के विकास सोनी ऋतुराज ने नफ़रत करनी हो जब तुमको खुलकर नफरत कर लेना सुनाया.शाहजहांपुर के कवि लालित्य पल्लव भारती ने सुनाया, मन की बात अधर पर लाना कितना मुश्किल है, ढाई अक्षर उन्हें बताना कितना मुश्किल है, प्यार कहीं बदनाम न हो, मैं कोशिश करता हूं, पर दुनिया से प्रेम छिपाना, कितना मुश्किल है, ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.

इस कवि सम्मेलन व मुशायरे में लखनऊ के वरिष्ठ शायर साहिल लखनवी के शेर यही पतझड़ों का है आशियां यहीं दफ्न होती बहार है, पढ़ा तो गांधी पुस्तक मेला तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. विकास शर्मा पारस' की मुझको दुनिया तुम्हारा कहेगी सदा, शायर जहीर अहमद ने मैं जानता हूँ कि तू लौटकर न आएगा, शायर व संस्था अध्यक्ष इशरत सगीर ने आंखें जलाके हमने सजा दीं हैं राह में, सुनाया. लखनऊ की शायरा सुम्मैया राना ने एक दोस्त ऐसा भी मुझे परवरदिगार दे शायरा साजिदा सबा ने हमेशा दर्द लफ्जों में पिघलने दें मगर कब तक, शायर फहीम फाकिर ने मैं तेरी प्यास का यूं इन्तजाम करता चलूं, डॉ. सुमन सुरभि ने प्रेम के ढाई आखर में संसार समाया है सुनाया. कार्यक्रम का समापन कवि लालित्य पल्लव के शेर आदमीयत रह गई सिमटी जुबान तक, रह गया है देश बस अपने मकान तक पर खत्म हुआ. इस अवसर पर गांधी पुस्तक मेला के संयोजक नीरज अरोड़ा, कस्तूरी लाल अरोड़ा और धीरज मिश्रा मौजूद रहे.