नई दिल्लीः स्थानीय त्रिवेणी कला संगम के श्रीधरानी कला दीर्घा में रज़ा फाउंडेशन ने  एक दुर्लभ प्रदर्शनी का आयोजन किया. 'संग-साथ' नामक इस प्रदर्शनी में यों तो भारतीय कलाजगत की कई अंतर्राष्ट्रीय शख्सियतों की महत्त्वपूर्ण कृतियां एक साथ दर्शकों के लिए संजोई गई थीं, पर इसकी सबसे खास बात दो महान कलाकारों के आपसी पत्र – व्यवहार का प्रदर्शन भी था. इस प्रदर्शनी में कृष्ण खन्ना और सैयद हैदर रज़ा के बीच हुए पत्र- व्यवहार को भी प्रदर्शित किया गया है. कला जगत को मालूम है कि इन दोनों के बीच बड़ा आत्मीय संबंध रहा है और इनके बीच लंबे दौर तक पत्रों का आदान-प्रदान भी हुआ. बड़े-बड़े पत्रों में आत्मीय संवादों के साथ कला जगत की अनेक बातें और भारतीय और विश्व कला जगत के हालात व उनके बुनियादी मूल्यों पर इन पत्रों में विस्तार से चर्चा है, जिसने एक समूचे दौर को न केवल प्रभावित किया बल्कि कला प्रशिक्षुओं, शिक्षकों व मर्मज्ञों को भी बेहद प्रभावित किया. याद रहे कि इन पत्रों का 'मेरे प्रिय' शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशन भी हुआ है.इस प्रदर्शनी में सैयद हैदर रज़ा, रामकुमार, मक़बूल फिदा हुसेन, कृष्ण खन्ना, अकबर पदमसी और रज़ा की पत्नी जानिन मौंजिला की कुछ यादगार कृतियां प्रस्तुत की गई हैं. ऐसा बहुत कम होता है, जब कला प्रेमी एक साथ अपने पसंदीदा कलाकारों की महत्त्वपूर्ण कलाकृतियों से एक साथ एक ही जगह पर रूबरू हो पाते हैं. 

 

प्रख्यात कला समीक्षक डॉ ज्योतिष जोशी ने प्रदर्शनी के अवलोकन के बाद अपनी टिप्पणी कुछ इस तरह से दी, " इस प्रदर्शनी में शामिल कृतियाँ एक मूल्यवान दौर को प्रत्यक्ष करती हैं. इनमें रज़ा के कुछ पुराने आकृतिमूलक काम भी हैं, तो कुछ अविस्मरणीय रेखांकन भी, उनकी बिंदु सीरीज के कामों के साथ रामकुमार के अमूर्त काम भी प्रदर्शनी में हैं. हुसेन, पदमसी, कृष्ण खन्ना और जानिन मौंजिला के कई यादगार चित्र उनकी सर्जन प्रक्रिया को समझने में हमारी मदद करते हैं. जानिन के काम अलग मिज़ाज के हैं जिनमें फ्रांसीसी प्रविधि के नमूने हैं. टी बैग से बना एक काम तो इतना नायाब है कि उसे आप देखते रह सकते हैं और उसके साथ रोजमर्रा के जीवन में झांक सकते हैं. एक दौर के इन मास्टर कलाकारों को एक साथ देखना, इनके कामों में आवाजाही करना तथा रंगों, तुलिकाघातों, अमूर्त और मूर्त संयोजनों में इनकी दक्षता से गुजरना एक अपूर्व अनुभव को पाने जैसा है, जो एक साथ इतनी विविधता से कहीं और पाना सम्भव नहीं. कह सकते हैं कि 'संग-साथ ' नामक यह प्रदर्शनी आयोजित कर रज़ा फाउंडेशन ने बहुत सराहनीय काम किया है. इसे कला में रुचि लेनेवालों को जरूर देखना चाहिए."