इंदौरः स्थानीय यशवंत क्लब परिसर में आयोजित समारोह में साहित्यकार रोमेश जोशी की 24 कहानियों का संकलन 'जोशी जी की कहानियां' का विमोचन फिल्म अभिनेत्री, लेखिका एवं कवयित्री दिव्या दत्ता ने किया. इस अवसर पर फिल्म समीक्षक पराग छापेकर, नायाब पब्लिकेशन के प्रकाशक शाहिद खान और पुस्तक संपादक इरशाद खान सिकंदर उपस्थित थे. वक्ता अतिथियों ने जीवन में लेखन के महत्त्व पर चर्चा की और पठन पाठन के विस्तार के प्रयासों को भी साझा किया. उल्लेखनीय है कि लेखक शरद जोशी के छोटे भाई रोमेश ने शुरुआत में बड़े भाई के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए व्यंग्य लेखन किया. बाद में इस विधा में अलहदा शैली विकसित कर अपनी अलग पहचान बनाई. जोशी के निधन से पहले उनकी सात पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका था. 'व्यंग्य की लिमिट” उनकी चर्चित कृति है. शिव शर्मा के साथ लिखा उपन्यास 'हुजूर-ए-आला' भी काफी चर्चित रहा.भारतीय ज्ञानपीठ, राजकमल प्रकाशन जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशकों ने जोशी की पुस्तकों का प्रकाशन किया है.
'जोशी जी की कहानियां' पुस्तक पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा ने कहा कि हास्य और व्यंग्य में अंतर होता है. जीवन की संगति को जब विसंगति के रूप में प्रस्तुत किया जाता तब हास्य उत्पन्न होता है. किंतु जब विसंगति को संगति बनाकर लिखा जाए तब वह व्यंग्य हो जाता है. रोमेश जोशी की रचनाएं मारक और मर्मभेदी होती हैं. वे अपनी कलम से समाज में व्याप्त विकृति को इतने शऊर से उकेरते हैं तो हमें वास्तविकता का पता भी चल जाता है और बुरा भी नहीं लगता. वे गुदगुदाते हुए समस्या का उल्लेख भी कर देते हैं. मुस्कुराते हुए समाधान भी सुझा देते हैं. बुंदेलखंड में प्रचलित एक लोकोक्ति इनकी लेखनी पर सटीक बैठती है- कनवा से कनवा कहो तो तुरतई जै है रूठ, अरे धीरे-धीरे पूछ लो की कैसे गई थी फूट.