पूर्णियाः कथाकार डॉ दीर्घ नारायण के किताबघर से प्रकाशित तीसरे कहानी संग्रह 'हिंदुस्तान की डायरी' का विमोचन व विमर्श महान कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की धरती पूर्णियां के कला भवन के सुधांशु सभागार में हुआ. इस अवसर पर लेखक के अलावा कथाकार महेश दर्पण, हरिनारायण, रजनी गुप्त, चंद्रकिशोर जायसवाल और निरुपमा राय सहित कई साहित्यकार व साहित्यप्रेमी मौजूद थे. दीर्घ नारायण की रचनाएं प्राय: पत्र -पत्रिकाओं में छपती रही हैं. इससे पूर्व उनके संकलन 'पहला रिश्ता' और 'क्रांति की मौत' नाम से आ चुके हैं. महेश दर्पण ने अपने वक्तव्य में कहा कि दीर्घ नारायण की कहानियों में अपने समय, समाज और बदलती संस्कृति की धड़कन साफ सुनाई देती है. यह कहानियां हमें वहां ले जाकर खड़ा कर देती हैं जहां से एक गंभीर भविष्य दृष्टि का सृजन होता है. देश के भीतर ही नहीं, सीमा पार हुक्मरानों को भी ये कहानियां संदेश देती हैं. 'हिंदुस्तान की डायरी' इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक रचना है. बदलते वक्त में परिवार, शहर, देशऔर समाज की सुनाई देने योग्य आहटें इस कथा-डायरी में दर्ज हैं. ये हर कहानी में एक नए ही अंदाज में सुनाई देती हैं. लेखक को लोकेल और चरित्रों की गहरी पकड़ तो है ही, वह इल्यूजन और रियलिटी के बीच कहानी से ऐसा प्रकाश डालता है कि वस्तुस्थिति सामने हो आती है. हमें बहुत साफ दो भारत नजर आने लगते हैं. साधन संपन्न और साधनहीन. एक ओर श्रम किए बगैर ही लोग धन कुबेर हुए जा रहे हैं और दूसरी ओर खटते रह जाने के बावजूद लोग अभावों में पलने को मजबूर हैं. इस दृष्टि से 'शताब्दी के ट्वीन टॉवर' और 'अगस्त दो हजार सैंतालीस' उल्लेखनीय रचनाएं हैं. 'मौसी की पथरी' जैसी कहानी के इस लेखक को उन्होंने जीवन और कथारस से रचा-पगा बताया. लगभग सभी वक्ताओं ने इस संकलन की तारीफ की.
याद रहे कि कुछ माह पहले इस संकलन का लोकार्पण समारोह जब दिल्ली में हुआ था, तब वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा था कि 'ये कहानियां कहती हैं कि हिंदुस्तान की जमीन पर गड्ढे हैं. जहां ये गड्ढे नहीं हैं, वहां धन आ जाता है. अगर आपके पास कोई चीज जरूरत से अधिक आ गई तो आपका शरीर सुंदर नहीं रह सकता. सुषमा और सुंदरता सहजता के बिना संभव नहीं है. ये कहानियां इतनी अच्छी हैं कि इन्हें पढ़कर आप अपने आप को समझेंगे. आजाद हिंदुस्तान में छद्म आधुनिकता के नाम पर जो मूल्यांधता फैली है, उसे यह कहानियां खूबसूरती से सामने रखती हैं.