भोपालः हिंदी के अग्रणी मंचीय कवि डॉ कुमार विश्वास का कहना है कि जब तक उर्दू शायरी की कायनात ज़िंदा रहेगी, तब तक हज़ारों साल राहत साहब का नाम भी ज़िंदा रहेगा. वे रहम के शायर थे. उनके जैसा उम्दा शायर और इंसान मिलना बहुत मुश्किल है. उनके इंतकाल से मुशायरे का मेरा आधा हिस्सा दुनिया से चला गया है. विश्वास मशहूर शायर और गीतकार डॉ राहत इंदौरी की याद में मंजुल पब्लिशिंग हाउस की ओर से इंस्टाग्राम पर आयोजित विशेष कार्यक्रम 'एक शाम राहत के नाम' में अपने जज़्बात साझा कर रहे थे. सत्र की सूत्रधार थीं लेखिका, ब्लॉगर और स्टोरी टेलर केना श्री. विश्वास ने इस अवसर पर कहा कि राहत साहब से उनके पेशेवर रिश्ते नहीं थे, बल्कि वे उन्हें छोटे भाई जैसा स्नेह दिया करते थे. विश्वास के शब्द थे, ''हम दोनों के बीच आत्मीय जुड़ाव की शुरुआत कई साल पहले एक मुशायरे के दौरान मंचीय नोकझोंक से हुई थी, लेकिन फिर प्रगाढ़ता ऐसे बढ़ी कि हम रात्रि के किसी भी पहर में एक-दूसरे का फ़ोन लगा देते थे.'' विश्वास ने राहत साहब से जुड़े अनेक किस्से भी सुनाए. उन्होंने कहा, ''कपिल शर्मा शो में राहत साहब की मौजूदगी के बाद जब मैं अमेरिका गया, तो वहाँ भी लोग उनके बारे में पूछने लगे थे. राहत साहब बेहद ज़िंदादिल इंसान थे.'' विश्वास  ने उनके साथ बहरीन यात्रा और दुबई से रात तीन बजे उनका एक गीत सुनकर उन्हें फ़ोन लगाने की याद भी साझा की.  
विश्वास ने कहा कि राहत साहब का मशहूर शेर 'सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है….' एक लोकतान्त्रिक पैग़ाम है. इससे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है. इससे आपत्ति उन्हीं लोगों को है, जो इस मुल्क़ को अपने बाप का समझते हैं. उन्होंने बताया कि जब पहली दफा पाकिस्तान की उम्दा और नामवर शायरा रेहाना रूही इंदौर आईं तो वह इसकी गली, मोहल्ले को बड़ी हसरत भरी निगाहों से देख रही थीं, फिर शाम को मुशायरे के दौरान उन्होंने अपनी दिल की बात को शेर के जरिए कुछ यूं बयां किया, 'जहां में धूम है, हल्ला है अपने राहत का, यहीं कहीं पे मोहल्ला है अपने राहत का'. शायरा ने बताया कि जब विमान इंदौर में उतरने वाला था, तब एक एयर होस्टेस से टिश्यू पेपर लेकर उन्होंने अपनी भावनाएँ काग़ज़ पर उतार दी थीं. इस कार्यक्रम का आगाज़ कवयित्री वृंदा वैद ने किया. उन्होंने राहत साहब को खिराजे अकीदत पेश करते हुए कहा कि वे ख़ुद से, लोगों से और वतन से बेपनाह मोहब्बत करते थे. वे कहा करते थे कि वे उर्दू अदब का हिस्सा हैं और ज़बान का कोई मज़हब नहीं होता. उन्होंने राहत साहब की 'सर पर सात आकाश ज़मीं पर सात समुंदर बिखरे हैं… और  धूप बहुत है मौसम जल थल भेजो ना…जैसी दिल को छू लेने वाली रचनाएँ भी सुनाईं. 'इश्क़-मोहब्बत और राहत' नामक सत्र में केना श्री ने उस अंदाज़ पर बात की, जिसमें राहत साहब इश्क़ को बयां किया करते थे. उन्होंने कहा कि राहत साहब शब्दों के जादूगर थे और उनकी शायरी में ऐसा तिलिस्म था कि उसे सुनकर न जाने कितने लोगों को उर्दू शायरी से मोहब्बत हो गई.