रायपुरः हिंदी के जाने-माने आलोचक डॉ राजेंद्र मिश्र के निधन से साहित्य जगत में शोक व्याप्त हो गया. लेखक गिरीश पंकज ने उनको याद करते हुए सोशल मीडिया एक लंबी पोस्ट लिखी है, जिसमें उन्होंने बिलासपुर में अज्ञेय और मुक्तिबोध से जुड़े मिश्र से सुने एक बहुत मर्मस्पर्शी संस्मरण का जिक्र किया है कि बिलासपुर के एक आयोजन में शामिल होने आए मुक्तिबोध जब विश्राम कर रहे थे, तब अज्ञेय जी आए और मुक्तिबोध के सिरहाने तकिया रखकर चुपचाप चले गए. मुक्तिबोध की जब नींद खुली तो वे चकित थे कि ऐसा किसने किया. बाद में उन्हें पता चला कि तकिया रखने वाले अज्ञेय थे. इसके अलावा भी कई साहित्यकारों ने उनको श्रद्धांजलि दी है।
राजेन्द्र मिश्र का जन्म 17 सितंबर,1937 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले के अर्जुंदा में हुआ था. आपने नागपुर विश्वविद्यालय के मॉरेस कॉलेज से स्नातकोत्तर और सागर विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी. यह वह दौर था जब रायपुर के लोग उच्च शिक्षा के लिए नागपुर या सागर जाया करते थे. मिश्र दोनों ही जगह गए. विद्यार्थी जीवन में ही मिश्र की रुचि साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में हो गई थी. आप लगभग चालीस साल तक हिंदी के प्राध्यापक रहे. साहित्य की अपनी गहरी समझ से उन्होंने अपने विद्यार्थियों में भी वही साहित्यिक संस्कार गढ़ा. 1997 में स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे मध्यप्रदेश शासन द्वारा पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में स्थापित पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी शोधपीठ के पहले अध्यक्ष बनाए गए. इस विश्वविद्यालय में हिंदी अध्ययन शाला की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी. प्रो मिश्र ने 'एकत्र' नामक एक संस्था भी बनाई थी, जिनमें समय-समय पर वे हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों को व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया करते थे.
आलोचना के क्षेत्र में उन्होंने अनेक किताबें लिखीं और संपादित की, तो कुछ का संचयन भी किया, जिनमें 'श्रीकांत वर्मा का रचना संसार', 'नई कविता की पहचान', 'छत्तीसगढ़ में मुक्तिबोध', 'केवल एक लालटेन के सहारे' (मुक्तिबोध: एक अन्तर्कथा', 'आधुनिक हिन्दी काव्य', 'गांधी अंगरेज़ी भूल गया है', 'समकालीन कविताः सार्थकता और समझ' और 'हद बेहद के बीच', 'नई कविता की पहचान', 'श्यामा-स्वप्न', 'श्रीकांत वर्मा-चयनिका', 'अभिज्ञा- तिमिर में झरता समय' आदि उल्लेखनीय हैं. वे अक्षर-पर्व रचना वार्षिकी के तीन अंकों के अतिथि संपादक भी रहे. वे अज्ञेय, निर्मल वर्मा, और विनोद कुमार शुक्ल जैसे रचनाकारों के आत्मीय थे. उन्हें मुक्तिबोध सम्मान, बख्शी सम्मान, महाकौशल कला परिषद सम्मान से भी नवाजा गया था. छत्तीसगढ़ गाथा, म.प्र. साहित्य सम्मेलन आदि ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है.