आज रामनवमी है, ऐसे में भारत के घरघर में मर्यादा पुरुषोत्तम की अराधना सहज है. भारतीय साहित्य तो हर युग में उन पर लिखी कृतियों से भरा पड़ा है, पर विश्व साहित्य में भगवान राम की चर्चा कितनी हुई आज इस पर बात करते हैं. हालांकि यह एक दुष्कर कार्य है. वजह यह कि भगवान राम सनातन, संस्कृति के वाहक, इतिहास सारथी, साहित्य, कथा और कल्पना का आधार रहे हैं. आदिकवि वाल्मीकि कृत रामायण के दिग्वर्णन का प्रभाव जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया सहित समूचे दक्षिण पूर्व एशिया और उसके बाहर भी पड़ा. इसी के साथ ही भगवान राम की व्याप्ति 'हममें, तुममें, खड़क खंभ में, सबमें व्यापत राम' की तर्ज पर होती चली गई. दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण कृति जावानी भाषा रामायण का काबीन है, जिसकी तिथि नौवीं शताब्दी का पूर्वार्ध है, इसके रचनाकार महाकवि योगीश्वर हैं. पंद्रहवी शताब्दी में इंडोनेशिया के इस्लामीकरण बावजूद वहां जावानी भाषा में सेरतराम, सेरत कांड, राम केलिंग आदि अनेक रामकथा काव्यों की रचना हुई. कंपूचिया के अनेक शिलालेखों में रामकथा की चर्चा मिलती है. वहां खंडित रूप में एक कृति 'रामकेर्ति' का भी जिक्र जरूरी है. चंपा, जिसे वर्तमान में  वियतनाम के नाम से जानते हैं के एक प्राचीन शिलालेख में वाल्मीकि के मंदिर का उल्लेख है. इसी तरह लाओस में रामकथा पर आधारित रामजातक 'फ्रलक फ्रलाम', 'ख्वाय थोरफी', 'ब्रह्मचक्र'और 'लंका नोई' उपलब्ध हैं.
थाईलैंड में तो तासकिन रामायण, सम्राट राम प्रथम की रामायण, सम्राट राम द्वितीय की रामायण, सम्राट राम चतुर्थ की रामायण (पद्यात्मक), सम्राट रामचतुर्थ की रामायण (संवादात्मक),सम्राट राम षष्ठ की रामायण (गीति-संवादात्मक) उपलब्ध हैं. इसी तरह बर्मा यानी म्यांमार में रामकथा साहित्य की 16 रचनाएं, जिनमें रामवत्थु जैसी प्राचीनतम कृति शामिल है का पता चला है. मलयेशिया में रामकथा से संबद्ध 'हिकायत सेरी राम', 'सेरी राम', 'पातानी रामकथा' और 'हिकायत महाराज रावण' कृतियां मिली हैं. चीन में रामकथा बौद्ध जातकों के माध्यम से पहुंचीं. वहां अनामक जातक और दशरथ कथानम का क्रमश: तीसरी और पांचवीं शताब्दी में अनुवाद किया गया था. तिब्बती रामायण की छह पांडुलिपियां तुन-हुआन नामक स्थल से प्राप्त हुई हैं. इनके अतिरिक्त राम कथा पर आधारित 'दमर-स्टोन' तथा संघ श्री विरचित दो अन्य रचनाएं भी उल्लेखनीय हैं. एशिया के पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित तुर्किस्तान के पूर्वी भाग से खोतानी रामायण की प्रति पेरिस पांडुलिपि संग्रहालय से प्राप्त हुई है. इस पर तिब्बत्ती रामायण का प्रभाव है. चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित मंगोलिया में राम कथा पर आधारित जीवक जातक नामक रचना के अतिरिक्त तीन अन्य रचनाओं में भी राम का विवरण मिलता है. जापान के एक लोकप्रिय कथा संग्रह 'होबुत्सुशु' में भी संक्षिप्त रामकथा संकलित है. श्री लंका में कुमार दास के द्वारा संस्कृत में जानकी हरण की रचना हुई थी. वहां सिंहली भाषा में भी रचनाएं मिलती हैं. नेपाली में भानुभक्तकृत रामायण का कहना ही क्या. खास बात यह कि सभी कृतियां भगवान राम के लोक-मंगल रूप को ही उजागर करती हैं.