नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने अपने स्थापना दिवस पर 'महात्मा गांधी : एक लेखक और वक्ता के रूप में' विषयक व्याख्यान आयोजित किया, जिसमें इतिहासकार – लेखक रामचंद्र गुहा ने अपना वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि गांधी रवींद्रनाथ टैगोर की तरह सृजनात्मक लेखक तो नहीं थे, लेकिन उनका लेखन विभिन्न भाषाओं में, जिनमें गुजराती, अंग्रेज़ी और हिंदी थी, में अलग-अलग तरीकों से व्यक्त होता था. गुजराती में जहां वे भारतीय जनता से संवाद करते दिखते हैं, वहीं अंग्रेज़ी में उनका लेखन ब्रिटिश सरकार से राजनीतिक संवाद करता हुआ नज़र आता है. उन्होंने गांधी को एक वक्ता के रूप में बहुत संयत पाया. लुई फिशर की पुस्तक के एक उदाहरण से उन्होंने बताया कि गांधी एक वक्ता के रूप में आक्रामक नहीं थे बल्कि बोलते समय बहुत ही सहज ढंग से अपनी बात रखते थे. उन्होंने गांधी के हिंद स्वराज के एक उदाहरण के आधार पर बताया कि उनका पूरा लेखन चार मुख्य विचारों – सामाजिक परिवर्तन, आर्थिक उन्नति, सांस्कृतिक एकता और अहिंसा पर केंद्रित है.
रामचंद्र गुहा ने कहा कि गांधी के विपुल लेखन का महत्त्व तब और बढ़ जाता है, जब हम देखते हैं कि उनका यह लेखन किसी तय स्थान पर बैठकर नहीं हुआ है, बल्कि तमाम यात्राओं और स्थानों पर अनेक काम करने के बीच उन्होंने ऐसा संभव कर दिखाया है. उन्होंने कहा कि के. स्वामीनाथन और सी.एन. पटेल द्वारा गांधी वांग्मय के 97 खंडों का संपादन एक विश्वस्तरीय व्यवस्थित कार्य है. रामचंद्र गुहा ने श्रोताओं द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब भी दिए. कार्यक्रम के प्रारंभ में अकादमी के पूर्व सचिव इंद्रनाथ चौधुरी ने पुस्तकें और अंगवस्त्रम् भेंट कर रामचंद्र गुहा का स्वागत किया. साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने साहित्य अकादमी की अब तक की यात्रा के बारे में बताते हुए रामचंद्र गुहा का श्रोताओं से विधिवत परिचय करवाया. उन्होंने बताया कि साहित्य अकादमी स्थापना व्याख्यान कपिला वात्स्यायन, एस.एल. भैरप्पा और सीताकांत महापात्र जैसे प्रख्यात विद्वानों द्वारा दिया जा चुका है. इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, विद्वान, लेखक और छात्र मौजूद थे.