पटनाः बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ने देश की साझा सांस्कृतिक चेतना से राजभाषा को जोड़ कर देखने की अपनी पहल के तहत न केवल शताब्दी सम्मान समारोह का आयोजन किया बल्कि 'राजभाषा हिंदी की पूर्ण प्रतिष्ठा में बाधाएं एवं समाधान' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया. संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने की. मुख्य वक्ता के रूप में प्रो गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि हिंदी को ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में भी विकसित किया जाना जरूरी है. चेन्नई विश्वविद्यालय के सुंदरम पार्थसारथी ने कहा कि तमिलनाडु में लोग स्वेच्छा से हिंदी सीख रहे हैं और प्रतिवर्ष छह लाख विद्यार्थी हिंदी की परीक्षाओं बैठ रहे हैं. पुद्दुचेरी के वरिष्ठ साहित्यकार जे एन कृष्णमूर्ति ने कहा कि गैर-हिंदी प्रदेशों में हिंदी को सफलता तब मिलेगी, जब हम यह संदेश दें कि हिंदी उन पर थोपी नहीं जा रही है. गुजरात के केशु भाई देसाई ने कहा कि हिंदी का प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से हुआ है और यदि इसे देश की राजकाज की भाषा के रूप प्रतिष्ठित किया जाएगा तो इसमें और तेज़ी आएगी. केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक डॉ. नन्द किशोर पाण्डेय ने कहा कि यह खेद का विषय है कि भारत में अभी भी, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम और सिक्किम चार ऐसे राज्य हैं, जहां की राजकाज की भाषा अंग्रेजी है. रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो केशरीलाल वर्मा, प्रो शशि शेखर तिवारी, डॉ शिववंश पाण्डेय, डॉ मधु वर्मा तथा डा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए. मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया.
खास बात यह कि पूर्वोत्तर में हिंदी भाषा की पहुंच का उदाहरण हिंदी साहित्य सम्मेलन के इस कार्यक्रम में हुआ. सिक्किम के अमर बाणियो 'लोहोरो' जिन्होंने हिंदी में 'मानव' नामक किताब लिखी है, का कहना था कि उनकी मातृभाषा नेपाली है. सिक्किम में रेल लाइन नहीं होने से भी हिंदी का प्रचार-प्रसार कम हुआ है. हालांकि न्यू जलपाईगुड़ी होते हुए मांझीटांड रंगपो तक पटरी बिछाने के काम के लिए प्रयास किया जा रहा है. वे बताते हैं कि लोग हिंदी तो समझते हैं पर हिंदी में लिखने वालों की कमी है. सिक्किम से ही प्रो प्रदीप त्रिपाठी भी पटना आए. मणिपुर से थिंगजम श्याम किशोर का कहना था कि हिंदी में उनकी भी तीन किताबें प्रकाशित हुई हैं. तूतेंगलोन किताब गंगा की सफाई को लेकर पुराने राजाओं के किए प्रयास पर आधारित है. उन्होंने तसलीमा नसरीन के उपन्यास 'लज्जा' का भी हिंदी से मणिपुरी में अनुवाद किया है. उनके पास सौ से ज्यादा पांडुलिपियां हैं पर प्रकाशकों की कमी मणिपुर में है. उन्होंने बताया कि मणिपुर तक ट्रेन नहीं जाती. इसके लिए काम किया जा रहा है पर इसकी गति काफी धीमी है. ट्रेन का आवागमन हो जाएगा तो हिंदी का प्रसार तेज होगा. यह एक अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में इस दिशा में गंभीरता से काम हो रहा है.