नई दिल्लीः हिंदी साहित्य के विराट व्यक्तित्व पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी की जयंती पर पूरे हिंदी जगत ने उन्हें याद किया. सुबह से ही सोशल मीडिया पर उनके चाहने वालों ने अपने विचार रखे और उनकी लेखनी के अलग-अलग हिस्सों को याद किया. इसमें राजनीति, साहित्य और कला जगत शामिल है. संस्कृति मंत्रालय ने ट्विट किया, 'पद्म भूषण और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित महान हिंदी साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की जयंती पर शतशः नमन.' तो उत्तर प्रदेश सरकार ने लिखा, 'उत्कृष्ट निबंधकार, प्रबुद्ध आलोचक, भाषा के परिमार्जन को समर्पित विद्वान पद्म भूषण डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी, की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन.' राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का ट्विट था, 'हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर, महान उपन्यासकार 'पद्मभूषण' आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की जयंती पर सादर नमन. साहित्य का मर्म, मृत्युंजय रवीन्द्र, विचार-प्रवाह तथा बाणभट्ट की आत्मकथा जैसी आपकी रचनाएं भारतीय समाज का आईना है.' भाजपा से जुड़े विनय तेंदुलकर ने लिखा, 'पद्मभूषण श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी, उपन्यासकार, साहित्यिक इतिहासकार, निबंधकार, आलोचक व विद्वान थे. उन्होंने कई उपन्यास, निबंधों के संग्रह, ऐतिहासिक शोध लिखे. उन्होंने साहित्य-शास्त्र को एक नया मूल्यांकन दिया. उनके जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि.'
सांसद नंद कुमार सिंह चौहान का ट्विट था, 'बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा, अनामदास, सूर साहित्य, कबीर जैसी कालजयी कृतियां लिखने वाले हिंदी साहित्य के पुरोधा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की जयंती पर कोटिशः नमन!' तो रांची के सांसद संजय सेठ ने द्विवेदी जी की पंक्तियों के साथ ही उन्हें याद किया. उन्होंने लिखा, 'जिसमें शौर्य, धैर्य, साहस, सत्व हो. जो सदैव धर्म के मार्ग पर होता है. अंततः जीत उसी की होती है. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी को उनकी जयंती पर नमन्.' पर सबसे मजेदार टिप्पणी मुंबइया फिल्मों के अनूठे कलाकार पंकज त्रिपाठी की थीं. उन्होंने द्विवेदी जी की पंक्तियों को यों लिखा, 'नाखून हमारे पशुता के निशानी हैं. नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा. हजारी प्रसाद द्विवेदी. आज श्री द्विवेदी जी का जन्मदिन है. उपरोक्त पंक्तिया नाखून क्यूँ बढ़ते हैं निबंध से हैं. इस ललित निबंध को अवश्य पढ़ें.' याद रहे कि हिन्दी के प्रसिद्ध निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार पंडित हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, 1907 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था, बीस वर्षों तक शांति निकेतन में अध्यापन के बाद द्विवेदीजी ने जुलाई 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया. द्विवेदी जी 1957 में राष्ट्रपति द्वारा 'पद्मभूषण' की उपाधि से सम्मानित किए गए. साल 1973 में 'आलोक पर्व' निबन्ध संग्रह के लिए उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया. हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाओं में सूर साहित्य, हिंदी साहित्य की भूमिका, मेघदूत, अशोक के फूल, कुटज, बाण भट्ट की आत्मकथा, चारु चंद्रलेख, अनामदास का पोथा काफी प्रसिद्ध हैं. इनके अलावा कालिदास की लालित्य योजना, हिंदी साहित्य -उद्भव और विकास, हिंदी साहित्य का आदिकाल आदि उनकी श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियां हैं.