नई दिल्लीः साहित्य अकादेमी ने रवींद्र भवन सभागार में दिन भर के 'अखिल भारतीय मैथिली काव्योत्सव' का आयोजन किया, जिसमें दस राज्यों के कवियों ने शिरकत की. काव्योत्सव का उद्घाटन मैथिली के शीर्ष कवि-कथाकार गंगेश गुंजन ने किया. मैथिली कविता की विकास-यात्रा पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक काल-खंड में कविता अपना स्वरूप स्वयं गढ़ती है. उन्होंने इस बात पर अकादेमी का आभार जताया कि उसने देश की राजधानी में पहली बार इतने बड़े स्तर पर मैथिली को लेकर इतना महत्त्वपूर्ण आयोजन किया है. आगंतुकों का औपचारिक स्वागत करते हुए अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने कहा कि मैथिली भाषा-साहित्य के लिए यह सकारात्मक स्थिति है कि न केवल मिथिला में बल्कि भिन्न भाषा क्षेत्रों में भी विद्यापति-पर्व तथा अन्य साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों के जरिए मैथिली अपनी पताका फहराए हुए है. विषय प्रवर्तन करते हुए अकादेमी के मैथिली परामर्श मंडल के संयोजक प्रो. प्रेम मोहन मिश्र ने मैथिली की परंपरा और वर्तमान परिदृश्य पर अपनी बात रखते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि आज की कविता अभिधात्मक अधिक है. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रतिष्ठित विद्वान और मैथिली कवि-नाटककार प्र. उदय नारायण सिंह 'नचिकेता' ने कहा कि उनकी समझ से आज की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि मैथिली साहित्य और कविता के पिछले पचास सालों का इतिहास लिखा जाए. इस सत्र का संचालन अकादेमी के विशेष कार्याधिकारी डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश ने किया.
काव्योत्सव का विचार सत्र 'मैथिली कविता के वर्तमान परिदृश्य' पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता डॉ भीमनाथ झा ने की और कहा कि पूर्व कि मैथिली कविताएं जहां भाव प्रधान थीं, वहीं वर्तमान मैथिली कविता चिंतन प्रधान है. संचालक अमलेंदु शेखर पाठक ने कहा कि कविता किसी शैली शिल्प में हो उसमें उसकी आत्मा का होना जरूरी है. उन्होंने पिछले दस साल के मैथिली में प्रकाशित संग्रहों का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्तमान में मैथिली कविता अभिव्यक्ति के आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है. आलोचक ताराचंद वियोगी का कहना था कि वर्तमान में मैथिली कविता क्षेत्र में छः पीढ़ियां एक साथ सक्रिय हैं, जिनमें बड़ी संख्या युवाओं की है. कवि रमेश का कहना था कि मैथिली कविता को सवर्ण दायरे से बाहर निकल दलित, पिछड़ा, वंचित, मुस्लिम और उपेक्षित समाज तक लेकर जाना चाहिए. काव्योत्सव के दो सत्र कविता-पाठ के लिए समर्पित थे, जिसकी अध्यक्षता शेफालिका वर्मा और बुद्धिनाथ मिश्र ने की. इन सत्रों में सियाराम झा सरस, विभूति आनंद, विद्यानंद झा, कुमार मनीष अरविंद, सुरेंद्र नाथ, सदरे आलम गौहर, रमण कुमार सिंह, पंकज पराशर, मनोज शांडिल्य, अरुणाभ सौरभ, चंदन कुमार झा और उमेश पासवान ने अपनी कविताएं सुनाईं.